सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्कआईटीडीसी इंडिया ईप्रेस / आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: लोस चुनावों से पहले नेताओं के कांग्रेस छोड़ने और छिंदवाड़ा में भाजपा के आक्रामक प्रचार को पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने लोकतांत्रिक तांडव की संज्ञा दी है। वे बोले- जो लोग राम के नाम पर भाजपा में गए हैं, वे बेहतर होता कि अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन कर आते। पटवारी का दावा है कि मप्र की 50% लोकसभा सीटें कांग्रेस जीतेेगी। पेश है बातचीत के संपादित अंश…

आपकी अध्यक्षता में पहला चुनाव है। कुछ सीटों पर टिकट बांटने में देरी हुई, नेताओं में असहमतियां थीं?

हमने रणनीतिक रूप से प्रोग्रामिंग के तहत अलग-अलग वक्त पर टिकट घोषित किए हैं। जिन सीट पर टिकट देर से घोषित हुए, वहां बीएसपी भी एक फैक्टर है, इसलिए हमें समीकरणों का भी ध्यान रखना था। ऐसा कांग्रेस में पहली बार हुआ, जब सभी की सहमति से बेस्ट केंडिडेट को टिकट दिया गया है।

कमलनाथ, दिग्विजय समेत पार्टी के सभी बड़े नेता सिर्फ अपनी सीट पर ही ध्यान दे रहे हैं?

पहले चरण में छिंदवाड़ा में चुनाव हैं। मुख्यमंत्री और दो मंत्री वहीं टिके हैं। देश के गृहमंत्री पूरी रात वहां रुकते हैंं। कांग्रेस के विधायकों को परेशान किया जा रहा है। हमारा एक विधायक इसलिए पार्टी छोड़कर गया क्योंकि उसकी पत्नी पर एफआईआर थी। यह लोकतांत्रिक तांडव है। ऐसे में कमलनाथ जी का वहां रुकना स्वाभाविक है।

छिंदवाड़ा में भाजपा इतना जोर लगा रही है, तो कांग्रेस का कोई बड़ा नेता क्यों प्रचार के लिए नहीं आया?

यह हमारी रणनीति है कि इस चुनाव को स्थानीय स्तर पर ही लड़ेंगे। यदि चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर ले गए तो भाजपा की हठधर्मिता दूसरे स्तर पर चली जाएगी।

जीतू पटवारी क्यों चुनाव नहीं लड़ रहे? उमंग सिंघार सहित सभी बड़े नेताओं के चुनाव लड़ने की मांग हुई?

मेरा बहुत मन था लोकसभा लड़ने का, लेकिन पार्टी ने मेरे लिए कुछ और उचित सोचा-समझा होगा। हमने बेस्ट से बेस्ट प्रत्याशी चुनने की कोशिश की है।

वही लोग कांग्रेस छोड़कर गए, जिनका रेत, क्रशर या शराब का कारोबार

बड़ी संख्या में लोग कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा रहे हैं? कर्नाटक में स्थिति उलट है?

3 तरह के लोग छोड़कर गए हैं। पहले- जिन्हें अपना आर्थिक कारोबार चलाने के लिए सरकार का संरक्षण चाहिए था, जिनका रेत, क्रेशर, शराब, परिवहन का कारोबार था। दूसरे- जो जिला पंचायत आदि के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष थे, वे अविश्वास प्रस्ताव की धमकी से डरकर छोड़ गए। तीसरे- जिन्हें विस चुनाव में अनुशासनहीनता या गड़बड़ी के कारण पहले ही पार्टी निकाल चुकी।

भिंड से पूर्व लोकसभा प्रत्याशी देवाशीष जरारिया ने पार्टी छोड़ दी, अब बसपा से लड़ रहे हैं? ऐसे लोग जो पार्टी से पहले चुनाव लड़ चुके हैं क्यों छोड़कर जा रहे हैं?

उनके निर्णय से दुख हुआ है। एक भी कार्यकर्ता पार्टी छोड़ता है तो मेरी जिम्मेदारी है, उसे रोका जाए, उसकी समस्या दूर की जाए। आशीष जरारिया से कल मेरी ग्वालियर में लंबी बातचीत हुई है, उन्हें समझाया भी था। वे काफी उर्जावान और अच्छे दलित नेता हैं।

प्रदेश कांग्रेस में नेताओं में तालमेल की कमी है?

बिल्कुल भी नहीं हैं। 3 दिसंबर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र को विस चुनाव के नतीजे आए थे, पार्टी की अप्रत्याशित हार हुई और 5 दिसंबर को मुझे पार्टी की जिम्मेदारी सौंपी गई। मैं ऐसा पहला अध्यक्ष हूं, जिसे इन परिस्थितियों में जिम्मेदारी मिली। तब मैंने कहा था, हमारा नेतृत्व सामूहिक है, सिर्फ पद मेरे पास है, लेकिन नेता मैं अकेला नहीं हूं।

पार्टी के और कौन से नेता चुनाव लड़ना चाहते थे, जिन्हें टिकट नहीं मिल सका?

अरुण यादव ने खुद आगे रहकर कहा कि मैं गुना से लड़ना चाहता हूं। लेकिन वहां पार्टी कार्यकर्ताओं की इच्छा किसी स्थानीय व्यक्ति को लड़ाने की थी। इसलिए हमने बड़े नेता के बजाए स्थानीय को चुना। खंडवा की बात आई तो वहां जातिगत समीकरण पर चर्चा में सामने आया कि वहां 3 लाख से अधिक गुर्जर वोट हैं, इससे पहले हमारा सांसद गुर्जर बन चुका है।

अरुण यादव जी वहां से लड़ने के लिए भी सहमत थे, पर पार्टी ने उनका मना किया और निर्णय लिया कि वहां से गुर्जर लड़े। राजगढ़ से हमारे पास तीन दावेदार थे, लेकिन वहां 3 अलग-अलग समाज हैं, इसलिए तय किया कि जिसे सभी समाज साथ दे सकते हैं उसे उतारा जाए, ऐसे नेता सिर्फ दिग्विजय सिंह थे, तो उन्हें लड़ाया। इस बार कांग्रेस के टिकट चयन में कोई कोताही नहीं की है। सभी से बात कर पारदर्शिता से सबसे बेहतर को मौका दिया है।

भाजपा ने छह महिलाओं को लेकिन कांग्रेस ने सिर्फ एक महिला को टिकट दिया है।

हमें बेस्ट केंडिडेट को चुनना था, साथ ही हर जाति को मौका देना था। इसलिए कांग्रेस ने 70% टिकट एससी-एसटी और ओबीसी को दिए हैं। लेकिन महिलाओं वाले मुद्दे पर हम पिछड़े हैं, आगे इस पर काम कर बेहतर करेंगे।

कांग्रेस जाति जनगणना का वादा कर रही है, इससे सबसे ज्यादा फायदा ओबीसी को होने का दावा है। क्या इससे जातिवाद नहीं बढ़ेगा?

राहुल गांधी कह चुके हैं कि जातिगत जनगणना की बात पॉलिटिकल नहीं हैं, हम कितनी भी समानता की बात करें, लेकिन हमारा देश आज भी जातिगत समीकरण से प्रभावित होता है। आरक्षण इसलिए ही दिया गया था कि समानता का भावना देश में पैदा हो। लेकिन अब आर्थिक संसाधन देश की 10% लोगों के पास चले गए, 90% लोगों के पास सिर्फ दस फीसदी संसाधन हैं। यह आर्थिक अराजकता है। जातिगत जनगणना से आर्थिक गैरबराबरी, प्रशासनिक गैरबराबरी का पता कर इसे सभी को समान रूप में बांटने की बात है। ऊंची जातियों की गरीबी मिटाने की भी बात इसमें हैं।