सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्कआईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: हर साल 25 सितंबर को विश्व फेफड़ा दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य फेफड़ों की सेहत के बारे में जागरूकता फैलाना और बीमारियों से बचाव के लिए जागरूकता बढ़ाना है. इस मौके पर, एक बढ़ती चिंता का विषय बन चुकी वेपिंग की ओर ध्यान देना जरूरी है.

धूम्रपान छोड़ने का एक आधुनिक विकल्प समझी जाने वाली वेपिंग कई मिथकों के कारण तेजी से लोकप्रिय हो रही है, लेकिन इसके जोखिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

  1. मिथक: वेपिंग धूम्रपान से पूरी तरह सुरक्षित है

यह सबसे आम मिथक है. लोग मानते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट या वेपिंग धूम्रपान के मुकाबले कम हानिकारक है. हालांकि, वेपिंग में निकोटिन और अन्य हानिकारक कैमिकल्स की मौजूदगी होती है, जो फेफड़ों और हृदय को नुकसान पहुंचा सकती है.

मिथक: वेपिंग से धूम्रपान छोड़ना आसान हो जाता है

लोगों का मानना है कि वेपिंग धूम्रपान छोड़ने का एक बेहतर तरीका है. हालांकि, अध्ययन बताते हैं कि अधिकांश वेपिंग उपयोगकर्ता धीरे-धीरे फिर से सिगरेट की ओर लौट आते हैं. इसके अलावा, कुछ लोग धूम्रपान और वेपिंग दोनों का उपयोग एक साथ करने लगते हैं, जिससे जोखिम और बढ़ जाता है.

  1. मिथक: वेपिंग से कैंसर का खतरा नहीं होता

यह धारणा भी गलत है. वेपिंग में निकोटिन और अन्य कार्सिनोजेनिक तत्व होते हैं, जो कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं. लंबे समय तक वेपिंग करने से फेफड़ों और गले के कैंसर का खतरा बना रहता है.

  1. मिथक: वेपिंग से दूसरे लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता

लोग मानते हैं कि वेपिंग से केवल उपयोगकर्ता प्रभावित होता है. लेकिन, वेपिंग से निकले हुए धुएं में भी हानिकारक कैमिकल होते हैं, जो दूसरों की सेहत के लिए भी हानिकारक होते हैं, खासकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए.

  1. मिथक: वेपिंग उत्पादों में हानिकारक रसायन नहीं होते

बहुत से लोग मानते हैं कि फ्लेवर्ड वेपिंग प्रोडक्ट्स हानिकारक नहीं होते, लेकिन यह गलत है. कई फ्लेवर्ड वेप्स में रसायन और धातुएं होती हैं, जो सेहत के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती हैं.