सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : मध्यपदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय में विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस के अवसर पर “हमारी सहायता प्रणाली में सुधार” विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के विशेष शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित किया गया।इस अवसर पर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. ए. के. शुक्ला, निदेशक, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान, सीहोर ने अपने उद्बोधन में कहा कि, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान सीहोर मानसिक स्वास्थ्य की बीमारियों से संबंधित है और इसमें विभिन्न प्रकार के पांच पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं। उन्होंने डाउन सिंड्रोम बच्चों के विभिन्न लक्षणों को विस्तार से समझाया। निदेशक शुक्ला ने कहा कि, हमारे संस्थान में डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चों के इलाज के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
इस सिंड्रोम का कोई मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं है, बल्कि इसमें पुनर्वास की प्रक्रिया ही की जाती है। हमारे यहां क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और स्पेशल एजुकेटर होते हैं। उन्होंने समाज से आवाहन किया कि, यदि आपके पास कोई बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रसित है, तो कृपया उसे हमारे संस्थान में जरूर लेकर आए उन्होंने कहा कि, डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चों के लिए होम मैनेजमेंट एक महत्वपूर्ण पहलू है।


इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित निदेशक एस. पी. गौतम, पूर्व कुलपति, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि, डाउन सिंड्रोम का एक बड़ा कारण बड़ी उम्र में बच्चों का पैदा करना होता है। निदेशक गौतम ने विकासवाद की अवधारणा को समझाते हुए कहा कि, पहले एक्स एक्स क्रोमोसोम वाले मेल और एक्स वाए क्रोमोसोम वाले फीमेल होते थे। किंतु ताप बढ़ने के कारण यह उल्टा हो गया और अब एक्स वाए क्रोमोसोम वाले मेल और एक्स एक्स क्रोमोसोम वाले फीमेल होते हैं। उन्होंने बच्चों में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास क्यों और कैसे होता है? इस पर भी विस्तार से चर्चा की उन्होंने बताया कि, सिंड्रोम का अर्थ है एक कारण से कई अंगों का प्रभावित होना। उन्होंने इस संबंध में सबसे ज्यादा अभिभावकों को जागरूक करने की आवश्यकता बताई।
इस मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलगुरु संजय तिवारी ने विषय पर अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि, डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चों को स्नेह देने की बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि, मेडिकल के क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चों को भी सम्मानपूर्वक जीवन जीने का हक है। निदेशक तिवारी ने कहा कि, हमारे देश में 2011 के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार लगभग 2.6 प्रतिशत बच्चे दिव्यांग हैं। हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। हमें डाउन सिंड्रोम के बारे में जागरूकता कार्यक्रम करने की आवश्यकता है।
विश्वविद्यालय के विशेष शिक्षा विभाग की छात्राओं अनुषा दत्त एवं दीप्ति ने अपनी प्रस्तुति में बताया कि, निदेशक जॉन लेंगडॉन डाउन ने 1866 में इसका पता लगाया था। मनुष्य की 26 जोड़ी क्रोमोजोम्स के 21 वें क्रोमोसोम पर 3 क्रोमोसोम एक साथ होते हैं। जिसके कारण डाउन सिंड्रोम होता है। उन्होंने बताया कि, पहले 3 महीने की गर्भावस्था में ही विभिन्न प्रकार के परीक्षणों के द्वारा इसकी पहचान की जा सकती है कि गर्भ में पल रहे बच्चे में डाउन सिंड्रोम है कि नहीं।
कार्यक्रम की शुरुआत में विषय प्रवर्तन एवं स्वागत भाषण विशेष शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष हेमंत केसवाल ने दिया। उन्होंने कहा कि, भारत में प्रति 700 से 1000 बच्चों में से एक बच्चा डाउन सिंड्रोम से ग्रसित होता है। आज भारत में लगभग 35000 बच्चे प्रतिवर्ष इस बीमारी से ग्रसित पाए जाते हैं। डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को जीवन भर मेडिकल और पारिवारिक सहायता की आवश्यकता होती है। ऐसे बच्चों में संज्ञानात्मक समस्याएं और अन्य प्रकार की हड्डी और मांसपेशियों से संबंधित बीमारियां होती हैं। डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों की पुनर्वास की बहुत बड़ी आवश्यकता है और हमें इसके लिए अभिभावकों में जागरूकता कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन विश्वविद्यालय के निदेशक एवं प्रभारी कुलसचिव एल. पी. झरिया द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन केंद्र की वरिष्ठ सलाहकार, निधि रावल गौतम द्वारा किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी एवं विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।

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