सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ई प्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक अजय सिंह के नेतृत्व में कैंसर अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि हासिल हुई है। जैव रसायन विभाग की पीएचडी छात्रा सुश्री नेहा मसारकर ने अपनी थीसिस “स्तन कैंसर के खिलाफ पारंपरिक कीमोथेरेपी एजेंट्स के साथ मोरिंगा ओलिफेरा के जैव-सक्रिय यौगिकों के संयोजन के प्रभाव”, प्रस्तुत किया। निदेशक सिंह ने इस शोध की अहमियत बताते हुए कहा कि सुश्री नेहा मसारकर का यह शोध न केवल कैंसर उपचार के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान करता है, बल्कि यह एम्स भोपाल की वैज्ञानिक प्रगति और नवाचार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक यौगिकों और पारंपरिक उपचारों का यह संयोजन कैंसर के इलाज को अधिक सुरक्षित और प्रभावी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है और यह शोध कैंसर मरीजों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होगा।
सुश्री मसारकर का यह शोध स्तन कैंसर उपचार में नई संभावनाओं की तलाश करता है। स्तन कैंसर एक गंभीर बीमारी है, जिसके लिए पारंपरिक कीमोथेरेपी एक प्रभावी उपचार है। हालांकि, इसके दुष्प्रभाव, विषाक्तता और दवा प्रतिरोध उपचार प्रक्रिया को जटिल बना देते हैं। इन चुनौतियों का समाधान खोजने के उद्देश्य से, सुश्री मसारकर ने सहजन (मोरिंगा ओलिफेरा) के जैव-सक्रिय यौगिकों का पारंपरिक कीमोथेरेपी एजेंट्स के साथ संयोजन का अध्ययन किया। शोध के दौरान, विभिन्न इन-विट्रो प्रयोगों में यह पाया गया कि सहजन के जैव-सक्रिय यौगिकों ने कीमोथेरेपी की प्रभावशीलता को बढ़ाने में मदद की। इन यौगिकों ने कैंसर कोशिकाओं की मृत्यु दर को बढ़ाया और कीमोथेरेपी से जुड़े दुष्प्रभावों जैसे प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी और विषाक्तता को कम किया। यह शोध दर्शाता है कि सहजन के यौगिक और कीमोथेरेपी एजेंट्स का संयोजन कैंसर उपचार को अधिक सुरक्षित और प्रभावी बना सकता है।
यह शोध एम्स भोपाल के जैव रसायन विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर सुखेस मुखर्जी के मार्गदर्शन में किया गया। यह शोध कैंसर उपचार के क्षेत्र में नई संभावनाओं को प्रस्तुत करता है। यदि इन परिणामों को क्लिनिकल ट्रायल्स के माध्यम से प्रमाणित किया जाता है, तो मोरिंगा ओलिफेरा के जैव-सक्रिय यौगिकों का उपयोग कीमोथेरेपी के सहायक के रूप में किया जा सकता है। इससे न केवल कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ उपचार की प्रभावशीलता में सुधार होगा, बल्कि दवाओं के दुष्प्रभावों को भी कम किया जा सकेगा। इस उपलब्धि ने एम्स भोपाल को कैंसर अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई पहचान दी है। इस अवसर पर अनुसंधान डीन प्रो. रेहान-उल-हक, परीक्षा डीन प्रो. वैशाली वालके, जैव रसायन विभाग के प्रमुख प्रो. जगत आर. कंवर और संस्थान के अन्य संकाय सदस्य व विद्यार्थी उपस्थित थे।
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