सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी के मानविकी एवं उदार कला संकाय, टैगोर स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स द्वारा वनमाली सभागार में “टर्निंग पॉइंट ऑफ इंडियन आर्ट-इन रिफरेंस टू अमृता शेरगिल एंड रबीनद्रनाथ टैगोर” विषय पर विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ठ चित्रकार, लेखक एवं कला समीक्षक अशोक भौमिक, विशिष्ठ अतिथि देवीलाल पाटीदार और अतिथि सुनिल शुक्ला उपस्थित रहे। साथ ही कार्यक्रम में स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी की ओर से कुलगुरू अजय भूषण, कुलसचिव सितेश कुमार सिन्हा, मानविकी एवं उदार कला संकाय की डीन टीना तिवारी और टैगोर स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स के विभागाध्यक्ष अर्जुन कुमार सिंह प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत एसजीएसूय के कुलगुरू अजय भूषण द्वारा स्वागत उद्बोधन से की गई। उन्होंने अपने वक्तव्य में स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी ने स्किल यूनिवर्सिटी के वर्तमान समय में महत्व को रेखांकित किया। वहीं निदेशक अर्जुन कुमार सिंह, विभागाध्यक्ष, टैगोर स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स ने कार्यशाला की संकल्पना को बताया।
बतौर मुख्य वक्ता वरिष्ठ चित्रकार, लेखक व कला समीक्षक अशोक भौमिक ने विषय पर बात करते हुए कहा कि भारतीय कला में चित्र क्या बनाए और कैसे बनाए पर पूरी आजादी नहीं थी। राज्याश्रित और धर्माश्रित बंधन होने के कारण कलाकारों को यह आजादी नहीं थी कि वो तय कर सकें कि क्या बनाना चाहते और कैसे बनाना चाहते थे। इस तथ्य को राजा रवि वर्मा ने अपने कला के माध्यम से तोड़ा और वे पहले ऐसे चित्रकार थे जिन्होंने पेंटिंग कार्य का अपना स्टूडियो बनाया और ऐसे चित्रों की रचना की जो बहुत मूर्त थे और लोगों से जुड़ते थे। बाद में इस अवधारणा को गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर और अमृता शेरगिल ने आगे बढ़ाया। टैगोर ने अपनी कला को पुरानी परिपाटी और चित्र में कथा चित्रण कार्य की परंपरा को तोड़ा और चित्र को कथा-कहानी से निरपेक्ष कर चित्र कला की भाषा में काम किया। उन्होंने आम जन की तस्वीरों और छवियों को सामने रखा।
आगे उन्होंने बात करते हुए कहा कि ऐसा ही अमृता शेरगिल ने भी किया। शेरगिल ने अपने चित्रों में महिलाओं और आमजन को केंद्रित कर चित्र बनाएं और चित्रों में कथा कहानी कृति की परंपरा को तोड़ दिया। अब किसी कथा के संदर्भ की जरूरत नहीं थी। निदेशक भौमिक ने कहा कि यही टर्निंग पॉइंट है जिसने भारत में आधुनिक कला को एक नई दिशा दी। और बाद में पीढ़ियों के प्रेरणा बने। पर आज भी उनकी दृष्टि से काम होना बाकी है।
वहीं, देवीलाल पाटीदार ने कहा कि हमें अपनी परंपरा की पहचान हर समय करनी चाहिए और अपनी कला और संस्कृति पर भरोसा रख कर आगे बढ़ना चाहिए। वक्ता सुनिल शुक्ला ने कला के वर्तमान परिदृश्य पर बात करते हुए कहा कि आज कला पर चर्चा बहुत दयनीय अवस्था मे है। इसलिए इस प्रकार की कार्यशाला का महत्व बढ़ जाता है। आज कला शिक्षा को, कलाकारों और कला प्रेमियों को जोड़कर मौलिक चिंतक पर काम करने की जरूरत है। एआई के जमाने में कॉपी वर्क बहुत बढ़ रहा है। इसलिए मौलिक चिंतन की तरफ ध्यान बढ़ाना होगा।
कार्यक्रम में आभार वक्तव्य टीना तिवारी, संकाय प्रमुख, मानविकी एवं उदार कला संकाय, एसजीएसयू द्वारा दिया गया। उन्होंने मुख्य अतिथि, अतिथि, कला शिक्षकों, कलाकारों का हृदय से आभार किया। साथ ही उन्होंने सितेश कुमार सिन्हा, कुल सचिव, एसजीएसयू के उदार मन सहयोग के लिए बहुत धन्यवाद दिया। उन्होंने कुलाधिपति सिद्धार्थ चतुर्वेदी के लगातार सहयोग के लिए हृदय से आभार किया। मानविकी एवं उदार कला संकाय के सभी फैकल्टी मेंबर और विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का भी हृदय आभार दिया।
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