सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन “पूर्व लोकमंथन” का आयोजन किया गया  । “वाचिक परंपरा में प्रचलित हर्बल उपचार प्रणालियां: संरक्षण, संवर्धन और कार्य योजना” विषय पर इस दो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ केंद्रीय राज्यमंत्री (जनजातीय मामले) दुर्गादास उइके ने किया ।

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, प्रज्ञा प्रवाह, दंत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान भोपाल, एंथ्रोपोस इंडिया फाउंडेशन एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में यह सम्मेलन मानव संग्रहालय के आवृत्ति भवन में हुआ । सम्मेलन में शोध पत्रों का वाचन हुआ । सम्मेलन में पद्मश्री से सम्मानित हस्तियां भी विशेष रूप से शिरकत करेंगी।

इस दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के निदेशक अमिताभ पांडे,  प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलगुरु एवं जनसंपर्क आयुक्त सुदाम खाड़े, पूर्व कुलगुरु  के.जी. सुरेश साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त कुलपति पी.सी जोशी, रमेश गौड़, (आईजीएनसीए), जनजातीय अनुसंधान संस्थान भुवनेश्वतर उड़ीसा के निदेशक ओटा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली की एसोसिएट प्रोफेसर रीता सोनी, देबजानी रॉय, क्यूसीआई, एनईआईएफएम के निदेशक रोबिन्द्र टेरोन, केंद्रीय आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसंधान परिषद नई दिल्ली से गोयल, जया, ऐड. डिर. मोटा, राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान दिल्ली की विशेष निदेशक नूपुर तिवारी, अभिषेक जोशी आयुर्वेद चिकित्सक (बाली), सोबत (थाईलैंड), बामदेव सुबेदी, (नेपाल) विशेष रुप से अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में उपस्थित रहें।

सम्मेलन में 5 दिवसीय जनजातीय वैद्य शिविर एवं कार्यशाला भी आयोजित किया गया , जिसमें लोक चिकित्सक मरीजों का पारंपरिक इलाज करेंगे और विभिन्न रोगों में उनके द्वारा उपयोग किये जाने वाले  औषधियों के ज्ञान को भी साझा किया । इसमें लगभग 18 राज्यों से 100 हीलर्स आएंगे।

उल्लेखनीय है कि भारत में कई जनजातियों की अपनी पारंपरिक उपचार पद्धतियाँ हैं और वे बीमारियों के इलाज के लिए हर्बल ज्ञान के समृद्ध भंडार पर भरोसा करते हैं । ग्रामीण भारत में, औपचारिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक सीमित पहुंच के कारण गैर-संहिताबद्ध हर्बल उपचार अक्सर उपचार की पहली उपलब्ध सुविधा है ।