सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस / आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भोपालपरिसर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय नाट्यकार्यशाला के 12 वें दिन प्रथमसत्र में कर्नाटक से पधारे विषय विशेषज्ञ प्रो राघवेन्द्र भट्ट ने भावप्रकाश के रसविषयक तात्विक विवेचन को उद्घाटित करते हुए बताया कि नाटक में रस का उद्भावन अभिनय कर्ता के द्वारा सामजिक के मन में नाटक के रस का आस्वादन कराता है। रस ही नाटक का प्राण होता है।
जिस प्रकार हमारे शरीर में प्राण की विद्यमानता से ही जीवन की स्थिति होती है ठीक उसी प्रकार नाटक की कथा में रस प्राण होता है। उस रस के रसास्वाद के द्वारा सहृदय सामाजिक रसानन्द की अनुभूति कर रस के चरम सुख को प्राप्त करता है। रसानन्द प्राप्त करना ही नाटक का मख्य प्रयोजन कह सकते हैं। संस्कृतनाटक समाज को रस की सुखानुभूति की ओर लेजाता है। भास कालिदास भवभूति शूद्रक आदि नाट्यकारो की रचनाएँ समाज में प्रतिनिधि नाट्यरचनाएँ है जो विश्वरंगमंच को दिग्दर्शन करती है। संस्कृतनाटको का जितना प्रयोग किया जाएगा उतना ही अधिक उनकी रसपरिपाकता को समाज जान पाएगा। शारदातनय भावप्रकाश के माध्यम से संस्कृतरंगमंच के स्वरूप को समाज के मध्य प्रस्तुत किये हैं। रगंमंच पर अभिनय की तकनीक और उसकी सूक्ष्मताओं का विशद वर्णन किया है जिसको रंगकर्मियो को समझकर प्रयोग करना चाहिए।
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