सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : दिल्ली की साकेत कोर्ट ने सोशल वर्कर और नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर की 5 महीने की जेल की सजा पर रोक लगा दी है। साथ ही मानहानि केस में दिल्ली LG वीके सक्सेना को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

मेधा ने 1 जुलाई के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। जिसमें मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने उन्हें मानहानि का दोषी पाया था। साथ ही मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपए का LG सक्सेना को भुगतान करने का निर्देश दिया था।

साकेत कोर्ट ने सोमवार (29 जुलाई) को 25 हजार बेल बांड पर मेधा पाटकर को जमानत भी दे दी है।मामले की अगली सुनवाई 4 सितंबर को होगी।

मेधा ने कहा था- LG हवाला से लेनदेन करते हैं
25 नवंबर 2000 को मेधा पाटकर ने अंग्रेजी में एक बयान जारी कर वीके सक्सेना पर हवाला के जरिए लेनदेन का आरोप लगाया था और उन्हें कायर कहा था। मेधा पाटकर ने कहा था कि वीके सक्सेना गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहे थे। ये बयान वीके सक्सेना की ईमानदारी पर सीधा-सीधा हमला था। मेधा ने कहा था- सक्सेना ने शारीरिक हमला भी किया था

मेधा पाटकर ने कोर्ट में अपने बचाव में कहा था कि वीके सक्सेना 2000 से झूठे और मानहानि वाले बयान जारी करते रहे हैं। उन्होंने 2002 में उन पर शारीरिक हमला भी किया था, जिसके बाद मेधा ने अहमदाबाद में FIR दर्ज कराई थी।

मेधा ने कोर्ट में कहा था कि वीके सक्सेना कार्पोरेट हितों के लिए काम कर रहे थे और वे सरदार सरोवर प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों की मांग के खिलाफ थे।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली ट्रांसफर किया था केस
मेधा पाटकर के खिलाफ वीके सक्सेना ने आपराधिक मानहानि का केस अहमदाबाद की कोर्ट में 2001 में दायर किया था। गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया था। बाद में 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुजरात से दिल्ली के साकेत कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया। मेधा ने 2011 में खुद को निर्दोष बताते हुए ट्रायल का सामना करने की बात कही। वीके सक्सेना ने जब अहमदाबाद में केस दायर किया था तब वो नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे।

कौन हैं एक्टिविस्ट मेधा पाटकर
मेधा पाटकर सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो देश में आदिवासियों, दलितों, किसानों, मजदूरों और महिलाओं द्वारा उठाए गए कुछ राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर काम करती हैं। उन्हें मुख्य रूप से नर्मदा घाटी विकास परियोजना (एनवीडीपी) से विस्थापित लोगों के साथ काम करने के लिए जाना जाता है। एनवीडीपी मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों पर बांध बनाने की एक बड़े पैमाने की योजना है।