महाराष्ट्र विधानसभा की 288 विधानसभा सीटों के लिए बुधवार को सिंगल फेज में वोटिंग होगी। शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में टूट के बाद कुल 158 दल चुनाव मैदान में हैं। इनमें 6 बड़ी पार्टियां दो गठबंधनों का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ रही हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई में शिंदे गुट की शिवसेना और अजित पवार की NCP महायुति का हिस्सा हैं। जबकि कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) यानी NCP(SP) महाविकास अघाड़ी का हिस्सा हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना का गठबंधन था। तब भाजपा ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटें जीती थीं। जबकि कांग्रेस को 44 और NCP को 54 सीटें मिलीं थीं। भाजपा-शिवसेना आसानी से सत्ता में आ जातीं, लेकिन गठबंधन टूट गया।
तमाम सियासी उठापटक के बाद 23 नवंबर, 2019 को देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन बहुमत परीक्षण से पहले ही 26 नवंबर को दोनों को इस्तीफा देना पड़ा।
इसके बाद 28 नवंबर को शिवसेना, NCP और कांग्रेस की महाविकास अघाड़ी सरकार सत्ता में आई। उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के CM बने।
करीब ढाई साल बाद शिवसेना और उसके एक साल बाद NCP में बगावत हुई और 2 पार्टियां 4 दलों में बंट गईं। इसी राजनीतिक पृष्ठभूमि पर हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार और उद्धव ठाकरे की पार्टियों को बढ़त मिली थी।
29% उम्मीदवार दागी, 412 पर हत्या-बलात्कार जैसे गंभीर मामले दर्ज चुनाव आयोग के मुताबिक निर्दलीय समेत विभिन्न पार्टियों के कुल 4136 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) ने इनमें से 2201 उम्मीदवारों के हलफनामों की जांच कर एक रिपोर्ट तैयार की है।
इसके मुताबिक करीब 29 फीसदी यानी 629 उम्मीदवार आपराधिक छवि के हैं। इनमें से 412 पर हत्या, किडनैपिंग, बलात्कार जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं। 50 उम्मीदवार महिलाओं से जुड़े अपराधों के आरोपी हैं।
38 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति, 2201 में सिर्फ 204 महिलाएं ADR के अनुसार 829 यानी 38 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति हैं। पिछले चुनाव में यह आंकड़ा 32% था। इनके पास औसतन 9.11 करोड़ रुपए की संपत्ति है। जबकि भाजपा उम्मीदवारों की औसत संपत्ति करीब 54 करोड़ रुपए है। 26 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति शून्य बताई है।
वहीं, करीब 31% यानी 686 उम्मीदवारों ने अपनी उम्र 25 से 40 साल के बीच बताई है। 317 (14%) की 61 से 80 साल के बीच है, जबकि 2 उम्मीदवार की आयु 80 साल से भी ज्यादा है। इन 2201 में से सिर्फ 204 महिला उम्मीदवार हैं, जो करीब 9% होता है।
प्रत्याशियों के एजुकेशन क्वालिफिकेशन की बात करें तो 47% ने अपने आपको 5वीं से 12वीं के बीच घोषित किया है। 74 उम्मीदवारों ने खुद को डिप्लोमा धारक, 58 ने साक्षर और 10 ने असाक्षर बताया है।
ठाणे जिले में आने वाली इस सीट से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे चुनाव लड़ रहे हैं। इस जिले को शिवसेना का गढ़ माना जाता है। शिंदे 2004 में पहली बार ठाणे सीट से विधायक चुने गए थे। इसके बाद पिछले तीन चुनाव कोपरी-पचपखड़ी सीट से 50% से ज्यादा वोट पाकर जीत रहे हैं। 2019 के चुनाव में उन्हें करीब सवा लाख वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के संजय पांडुरंग ने सिर्फ 24,197 वोट पाए थे।
हालांकि, इस बार मुकाबला शिवसेना वर्सेज शिवसेना का है। पार्टी में टूट के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है। उद्धव गुट ने शिंदे के खिलाफ उनके राजनीतिक गुरु आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को उतारा है। आनंद को ‘ठाणे का ठाकरे’ कहा जाता था। उनके देहांत के 21 साल बाद भी ठाणे के शिवसैनिकों में उनका काफी सम्मान है।
लोकसभा चुनाव में शिंदे गुट की शिवसेना का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था। पार्टी ने सिर्फ 7 सीटें जीती थीं, जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को 9 सीटें मिली थीं। इसके बाद कहा गया कि महाराष्ट्र के लोगों ने उद्धव गुट को असली शिवसेना माना है। अब विधानसभा चुनाव के बाद यह पूरी तरह से साफ हो जाएगा कि आम मराठी मानुष बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना का वारिस किसे मानता है।
2. नागपुर दक्षिण-पश्चिम: देवेंद्र छठी बार विधायकी के लिए दौड़ लगा रहे
विदर्भ के केंद्र और RSS के गढ़ नागपुर की इस सीट से देवेंद्र फडणवीस लगातार चौथी बार और कुल छठी बार विधायक बनने की रेस में हैं। 2008 में परिसीमन से पहले वे दो बार नागपुर पश्चिम सीट से विधायक रहे हैं।
सिर्फ 22 साल की उम्र में (साल 1992) पहली बार नागपुर नगर निगम के पार्षद बनने वाले फडणवीस अगले टर्म में शहर के मेयर बन गए थे। इसके 2 साल बाद ही वे नागपुर पश्चिम से पहली बार विधायक चुन लिए गए।
2014 में राज्य का मुख्यमंत्री बनने से पहले वे कभी राज्य मंत्री तक नहीं रहे थे। पूर्व CM और मौजूदा डिप्टी CM फडणवीस के सामने कांग्रेस ने अपने पार्षद प्रफुल गुडाधे को उतारा है। वे 2014 में फडणवीस से हार चुके हैं। खास बात यह है कि प्रफुल के पिता विनोद गुडाधे पूर्व भाजपाई हैं। उन्होंने ही नागपुर में पहली बार भाजपा को जीत दिलाई थी और शहर से पार्टी के पहले विधायक बने थे।
3. बारामती: युगेंद्र उस भूमिका में जिसमें कभी अजित थे
इस सीट पर मुकाबला और भी दिलचस्प है। यहां NCP वर्सेज NCP की लड़ाई में चाचा-भतीजे आमने-सामने हैं। यह सीट शरद पवार का गढ़ रही है। वे 1967 से 1990 तक लगातार 6 बार इस सीट से विधायक रहे थे। वहीं, 1991 में उपचुनाव के बाद से अब तक अजित पवार 7 बार यहां से जीत चुके हैं।
NCP का हाल भी शिवसेना की तरह ही है। फूट के बाद यह पार्टी का पहला विधानसभा चुनाव है। हालांकि, शिंदे की शिवसेना की अपेक्षा अजित की NCP को लोकसभा में ज्यादा नुकसान हुआ था। पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। वहीं, शरद पवार की NCP ने 8 सीटें जीती थीं।
एक बार सांसद, 7 बार विधायक और 5वीं बार के डिप्टी CM अजित के सामने चुनौती कड़ी है। बड़े भाई श्रीनिवास पवार के बेटे युगेंद्र पवार शरद गुट की NCP से उनके सामने हैं। युगेंद्र, शरद के साथ आज-कल उसी तरह नजर आ रहे हैं जैसे कभी अजित पवार दिखते थे।
अजित के लिए कड़ी चुनौती इसलिए भी है क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी सुनेत्रा और बहन सुप्रिया आमने-सामने थीं। तब जनता ने सुप्रिया को चुना था। इस हार से अजित को बड़ा झटका लगा था। बाद में उन्होंने बहन के खिलाफ पत्नी को चुनाव लड़ाने को अपनी गलती कहा था।
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