प्रदेश में पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों के परिणाम के बाद प्रदेश से लेकर केन्द्रीय संगठन अब मंथन करने में जुट गया है कि आखिर कमी कहां रह गई। केन्द्रीय नेतृत्व इस जीत से खुश नहीं है..क्योंकि उसे पता है कि ये जीत किस तरह हासिल की गई है। केंद्रीय संगठन जानना चाहता है कि सत्ता में रहने के बावजूद सरकार से कहां कमी रह गई जो मतदाता को वे लुभा नहीं पाए। 16 नगरीय निकायों पर राज करने वाली बीजेपी के हाथ से इस बार सात नगर निगम निकलने के बाद संघ और संगठन दोनों चिंतित हैं..उनकी चिंता जायज भी है..अब भी नहीं जागे तो 2023 हाथ से निकल जाएगा..उसका सीधा असर 2024 पर भी आएगा..संघ और आईबी की रिपोर्ट की माने तो इस बार शिव और विष्णु की जोड़ी निकायों में कोई करिश्माई चमत्कार नहीं दिखा सकी। हालांकि जीत का डंका फिर भी पीटा जा रहा हैं..जबकि चंबल, विंध्य और यहां तक कि महाकौशल का मतदाता भी अपनी नाराजगी दिखाने में पीछे नहीं रहा. केन्द्र व प्रदेश की सत्ता में सबसे ज्यादा रसूख रखने वाले ग्वालियर-चंबल में मतदाताओं का बागी मूड उभरकर आया. अब तक अपराजेय रही ग्वालियर सीट अच्छे खासे अंतर से भाजपा हारी. दिग्गज नेताओं के राजसी रोड शो के रथ को मुरैना के मतदाताओं ने पंचर कर दिया. नगरपालिका और नगरपरिषद के चुनावों में भी कांग्रेस ने दबदबा कायम किया है. महाकौशल की जबलपुर, छिन्दवाड़ा, कटनी और विन्ध्य की रीवा, सिंगरौली भाजपा के खिलाफ गई. सतना में बसपा की बदौलत भाजपा की लाज बच गई. महत्वपूर्ण घटनाक्रम प्रदेश की राजनीति में सिंगरौली के जरिए आम आदमी पार्टी का प्रवेश है.