सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: उत्तर प्रदेश सरकार ने स्कूलों में लागू की गई डिजिटल उपस्थिति प्रणाली को वापस लेने का निर्णय लिया है। यह निर्णय विभिन्न चुनौतियों और शिक्षकों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। सरकार ने पहले 2.36 लाख सरकारी प्राथमिक शिक्षकों के लिए टैबलेट्स की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य उपस्थिति और प्रशासनिक कार्यों को डिजिटलीकृत करना था. यूपी के 6.90 लाख टीचरों को ऑनलाइन अटेंडेंस से राहत मिल सकती है। बेसिक शिक्षा विभाग और शिक्षक संघ के बीच वार्ता हुई है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार जल्द सरकार अपना आदेश वापस ले सकती है।
मौजूदा चुनौतियाँ और समस्याएँ
डिजिटल उपस्थिति प्रणाली लागू करने का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों की उपस्थिति की निगरानी और प्रशासनिक कार्यों को आसान बनाना था। हालांकि, तकनीकी कठिनाइयाँ, अपर्याप्त प्रशिक्षण, और डेटा गोपनीयता जैसे मुद्दे सामने आए। शिक्षकों ने तकनीकी समस्याओं का सामना किया और उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण और समर्थन की कमी महसूस हुई.
वहीं स्कूल्स में अभी भी पूरी किताबें नहीं पहुंची, कई स्थानों पर बेंचेस तक नहीं है। परंतु शासन जिद पर है कि सिर्फ उपस्थिति को नियंत्रण मिल जाए। योगी शासन अपने लगभग 8 लाख शिक्षकों को विश्वास में लेकर आगे बढ़े तो संभवतया बात कुछ ओर होती है। शासन और शिक्षक संगठन एक मंच होना चाहिए।
इन दिनों उत्तर प्रदेश के शिक्षकों ने डिजिटल उपस्थिति प्रणाली के खिलाफ जोरदार विरोध किया। प्राथमिक शिक्षक संघ, विशिष्ट बीटीसी संघ, और शिक्षामित्र अनुदेशक संघ समेत अन्य शिक्षक संघों ने इस प्रणाली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। मंगलवार शाम लखनऊ में महिला शिक्षक संघ की अहम भूमिका के साथ, शिक्षक संगठन एकजुट होकर डिजिटल अटेंडेंस के विरोध में संयुक्त मोर्चा बनाने पर राजी हुए।
विरोध का आलम यह है कि 12 जिलों से ज्यादा में शून्य डिजिटल उपस्थिति रही। यदपि शासन ने फिलहाल फैसला वापिस ले लिया और उम्मीद कर रही है कि अच्छी तैयारी और व्यवस्था के साथ सही तरीके से क्रियान्वित करने की मंशा है।
स्मार्ट स्कूलिंग के लिए सिफारिशें
स्मार्ट स्कूलिंग को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित सिफारिशें दी जा सकती हैं:
1. व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम: शिक्षकों को डिजिटल उपकरणों और सॉफ्टवेयर के उपयोग के लिए व्यापक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। नियमित प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जाने चाहिए ताकि शिक्षक तकनीकी समस्याओं का समाधान कर सकें और डिजिटल प्रणाली का पूरा लाभ उठा सकें।
2. मजबूत तकनीकी सहायता: स्कूलों में एक समर्पित तकनीकी सहायता टीम होनी चाहिए जो किसी भी तकनीकी समस्या का त्वरित समाधान प्रदान कर सके। इससे शिक्षकों का विश्वास बढ़ेगा और वे डिजिटल उपकरणों का कुशलता से उपयोग कर सकेंगे।
3. डेटा गोपनीयता और सुरक्षा: डेटा गोपनीयता और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सख्त सुरक्षा उपाय और नीतियां बनानी चाहिए ताकि शिक्षकों और छात्रों का डेटा सुरक्षित रह सके।
4. पायलट प्रोजेक्ट्स का उपयोग: किसी भी नई प्रणाली को पूरी तरह लागू करने से पहले उसे पायलट प्रोजेक्ट्स के रूप में सीमित संख्या में स्कूलों में लागू किया जाना चाहिए। इससे वास्तविक चुनौतियों का सामना किया जा सकेगा और उनके समाधान के बाद ही व्यापक स्तर पर लागू किया जा सकेगा।
5. शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी: किसी भी नई प्रणाली के कार्यान्वयन में शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। उनकी राय और सुझावों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जाना चाहिए, जिससे वे इसे अपनाने के लिए अधिक इच्छुक होंगे।
डिजिटल उपस्थिति प्रणाली को वापस लेना एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि स्मार्ट स्कूलिंग की दिशा में प्रयास जारी रहें। सरकार को उपरोक्त सुझावों को ध्यान में रखते हुए एक सुदृढ़ और प्रभावी डिजिटल प्रणाली विकसित करनी चाहिए, जो शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए लाभकारी हो।
स्मार्ट स्कूलिंग की दिशा में सही कदम उठाने से शिक्षा प्रणाली को आधुनिक और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है, जिससे छात्रों की सीखने की गुणवत्ता में सुधार होगा और शिक्षक अधिक कुशलता से अपना काम कर सकेंगे। सरकार का यह प्रयास निश्चित रूप से भविष्य में एक सशक्त और डिजिटल शिक्षा प्रणाली की ओर मार्गदर्शन करेगा।