आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित कवि–कथाकार– उपन्यासकार संतोष चौबे के नव प्रकाशित कविता संग्रह ‘घर बाहर’ का लोकार्पण कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (मिटों हॉल), भोपाल में समारोह पूर्वक किया गया है। यह समारोह ‘विश्व रंग’ के अंतर्गत आईसेक्ट पब्लिकेशन एवं वनमाली सृजन पीठ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार ए. अरविंदाक्षन ने कहा कि एक बेहतरीन रचना असंख्य अनुभवों की सन्निहिति है। ऐसा अनुभव तब कवि को प्राप्त होता है जब कवि कविता को सही अर्थ में जीना शुरू करता है। संतोष चौबे के कविता-संकलन ‘घर बाहर’ को इसी संदर्भ में देखना उचित लगता है। इस संकलन की कविताओं में कवि संतोष चौबे का आत्म का संगुफन है, साथ ही साथ कितने ही आत्मेतर अनुभवों का सन्निवेष भी। ‘घर बाहर’ इसी कवितानुभव का रूपक है।
ख्यात कवि एवं आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि संतोष चौबे एक ऐसे समर्थ कवि है जो समकालीन कविता के सुनिश्चित दायरे का अतिक्रमण लगभग अपने आरंभ से करते रहे हैं। चमकते लेकिन सिन्थेटिक काव्य–मुहावरों के बरक्स उन्होंने सादगी का वह मार्ग चुना है जो उन्हें कवियों के बीच विश्वसनीय बनाता है। उनकी कविताएँ पढ़ते हुए पाठकों को अक्सर लगता है जैसे वे अपनी ही आत्मा की इबारत बाँच रहे हैं। संग्रह की दूसरी ही कविता ‘थोड़ा हूँ, थोड़ा बाहर’ में संतोष चौबे जो कह रहे हैं, वह सिर्फ इस महादेश का नहीं बल्कि पृथ्वी के हर हिस्से का मनुष्य कभी न कभी जरुर महसूस करता है–
इधर घर बनाया है
शहर से कुछ दूर
इस तरह
थोड़ा शहर में हूँ
थोड़ा बाहर
अब उमर पहुँची पचास
इस तरह
थोड़ा जीवन में हूँ
थोड़ा बाहर।
यह कविता जीवन के व्यावहारिक और दार्शनिक दोनों सत्यों को बिना किसी आडम्बरपूर्ण शब्दावली के बड़ी सहजता से सामने रख देती है। जाहिर है, यह काव्य–कौशल से नहीं, कविता और जीवन की गहरी सलंग्नता के कारण संभव हुआ है। संतोष की कविताओं में जीवन के सूक्ष्म अनुभवों का तीक्ष्ण पर्यवेक्षण है।
वरिष्ठ कवि-कथाकार, उपन्यासकार, विश्व रंग के निदेशक, संतोष चौबे ने अपने रचनाकर्म पर बोलते हुए कहा कि मेरी कविताओं का मूल तत्व करुणा है।