करीब 20 साल पहले जब आसपास की मिट्टी हटी तो मूर्ति का सिर नजर आया। इसके बाद खुदाई की गई।

शहर से सटे गांव रैसलपुर में मौजूद दुर्लभ बौद्ध प्रतिमाओं एवं गांव में बिखरे पड़े पाषाण अवशेषों की सुध अब पुरातत्व विभाग ने ली है। लंबे समय से गांव में यह प्रतिमाएं मौजूद रहीं, लेकिन इन प्रतिमाओं के महत्व और इतिहास पर कोई शोध-सर्वे नहीं हुआ। अब विभाग के अफसरों ने इन प्रतिमाओं की खबर ली है।

संभावना है कि इन प्रतिमाओं को जल्द ही जिला मुख्यालय के प्राचीन संग्रहालय में संवारा जाएगा। रैसलपुर निवासी राजेन्द्र प्रसाद चौधरी के घर के पीछे बाड़े में दुर्लभ बौद्ध प्रतिमा रखी हुई हैं। पिछले दिनों पुरातत्व विभाग के दल ने पहुंचकर मूर्ति का निरीक्षण किया। टीम के साथ बुद्ध सोसायटी इटारसी के प्रहलाद निकम भी मौजूद रहे। विभाग के गाइड हुकुमचंद मलिक के अनुसार यह प्रतिमाएं बेहद कीमती हैं। बुद्ध कालीन प्रतिमाओं का मिलना गौरव की बात है। पिछले दिनों साहित्यकार सुधांशु मिश्र ने इन प्रतिमाओं एवं पाषाण अवशेष के गांव में होने की जानकारी अधिकारियों को दी थी।

ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव में कई प्रतिमाएं एवं पुरा संपदा लावारिश पड़ी हैं। इनमें एक बड़ी बुद्ध प्रतिमा है, जो ध्यानमुद्रा में है। यह प्रतिमा कई दिनों से यहां रखी हुई थी।

एक चबूतरे पर रखी यह दुर्लभ प्रतिमा बेहद प्राचीन है। बलुआ पत्थर से निर्मित करीब 4 फुट ऊंची एवं 3 फुट चौड़ी प्रतिमा करीब डेढ़ फुट मोटे शिलाखंड पर उकेरी गई है। इस प्रतिमा के दोनों और चंवरधारी पुरुष बने हुए हैं साथ ही दो मालाधारी स्त्री प्रतिमाएं नजर आती हैं। प्रतिमा के ऊपर छत्र भी बना हुआ है। मौजूद प्रतिमा बीच में खंडित है, जिसे जोड़कर ग्रामीणों ने सहेजकर रखा है।

चर्च में आग लगाने का प्रयास, दरवाजा जला मिला, क्रिश्चियन समुदाय भड़कागांव के किसान श्यामसुंदर चौधरी के अनुसार उनके भाई राजेंद्र चौधरी के घर के पीछे यह मूर्ति कई सालों से बाड़े में दफन थी। इस प्रतिमा का ऊपरी हिस्सा नजर आता था। उनके पूर्वज कई सालों तक इस प्रतिमा की पूजा करते रहे।

करीब 20 साल पहले जब आसपास की मिट्टी हटी तो मूर्ति का सिर नजर आया। इसके बाद खुदाई की गई। खुदाई में यह प्रतिमा सामने आई जो दो टुकड़ों में विभक्त थी। ग्रामीणों ने चबूतरा बनाकर प्रतिमा रख दी इसके बाद किसी ने इस मामले में खैर खबर नहीं ली।

मिश्रा ने कहा कि पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार इस क्षेत्र की ज्यादातर प्रतिमाएं 12 वीं शताब्दी के आसपास की हैं। संभावना है कि प्राचीन काल में यहां कोई ऐतिहासिक मंदिर रहा होगा जो समय के साथ नष्ट हो गया। इन प्रतिमाओं को संरक्षण मिलना चाहिए।

इस गांव में बुद्ध के अलावा सती शिला, स्तंभ, स्थापत्य खंड भी मौजूद हैं। इनमें उमा महेश्वर की पाषाण प्रतिमा का ऊपरी हिस्सा भी है, इस मूर्ति में पार्वती के हाथों में दर्पण है, अन्य देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। यहां अंबिका, गणेश प्रतिमा, भगवान शिव की प्रतिमा भी है। ग्रामीण बताते हैं कि यदि विभाग गंभीरता से खुदाई कर इस क्षेत्र का सर्वे करे तो कई बहुमूल्य एवं ऐतिहासिक शिलालेख भी मिल सकते हैं।