पीएससी 2020 में ओबीसी आरक्षण पर अंतिम निर्णय के बाद ही सुलझने के आसार, चयन खटाई में।

लोकेश सोलंकी, इंदौर। मप्र लोकसेवा आयोग (पीएससी) ने राज्यसेवा मुख्य परीक्षा 2020 का परिणाम तो जारी कर दिया है, लेकिन परिणाम के अलग-अलग फार्मूलों के कारण नई उलझन और विवाद खड़ा हो गया है। परिणाम की घोषणा के बाद दो आपत्तियां सामने आई हैं। मामला कोर्ट ले जाने की तैयारी शुरू हो गई है। ऐसे में तय है कि जब तक ओबीसी आरक्षण पर अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, चयन प्रक्रिया पूरी होनी मुश्किल ही है। दरअसल, पीएससी ने राज्यसेवा 2020 की प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम सीधे 113 प्रतिशत पर जारी किया था, जबकि मुख्य परीक्षा (मेंस) का परिणाम 87-13-13 के फार्मूले पर जारी किया है। इस तरह अलग-अलग फार्मूले से परीक्षा परिणाम जारी करना ही विवाद की जड़ बन गया है।

राज्य सरकार द्वारा बढ़ाए गए 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के खिलाफ हाई कोर्ट में मामला लंबित है। 29 सितंबर 2022 को सामान्य प्रशासन विभाग ने पीएससी को निर्देश दिया कि 87-13-13 के फार्मूले से रिजल्ट जारी कर प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए। इस फार्मूले पर अमल करते हुए पीएससी ने 87 प्रतिशत पदों के अनुपात में मुख्य परिणाम जारी किया। इसके अलावा 13 प्रतिशत पदों के मुकाबले दो अलग-अलग प्रावधिक रिजल्ट जारी किए गए। इनमें एक प्रावधिक रिजल्ट ओबीसी वर्ग का और दूसरा अनारक्षित वर्ग है। पीएससी का गणित है कि कोर्ट यदि 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के पक्ष में निर्णय देता है तो ओबीसी प्रावधिक सूची के अभ्यर्थियों को अंदर रख लिया जाएगा। निर्णय इसके विपरीत हुआ तो प्रावधिक सूची में अनारक्षित 13 प्रतिशत वाले अभ्यर्थियों को मुख्य चयन सूची में शामिल कर लिया जाएगा।

इन आपत्तियों से नया विवाद

पहली आपत्ति : सामान्य प्रशासन विभाग ने 87-13-13 लागू करने वाले आदेश के बिंदु तीन में स्पष्ट लिखा है कि प्रारंभिक परीक्षा में जो अभ्यर्थी प्रावधिक सूची में हैं, वे अगले दोनों चरण यानी मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू में भी प्रावधिक श्रेणी में ही रहेंगे। आपत्ति लेने वालों के अनुसार राज्यसेवा 2020 की प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम तो सीधे 113 प्रतिशत से जारी किया था। यानी पूर्व परिणाम में तो यह फार्मूला लागू ही नहीं था। ऐसे में कई ऐसे अभ्यर्थी जिनके अंक प्रारंभिक परीक्षा में कम होकर प्रावधिक में होते, वे अब मुख्य परीक्षा में अधिक अंक लाकर मुख्य सूची में आ गए होंगे। यह जीएडी के आदेश का उल्लंघन है। साथ ही एक चयन के परिणाम दो अलग-अलग पैमानों पर कैसे जारी हो सकते हैं।

दूसरी आपत्ति: अभ्यर्थी आरोप लगा रहे हैं कि प्रावधिक सूची में एक सूची जो अनारक्षित श्रेणी की है, उसमें सिर्फ सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के नाम ही नजर आ रहे हैं। पीएससी ने अनारक्षित सूची को सामान्य वर्ग की आरक्षित सूची में बदल दिया है। यह गलत है।

पीएससी बोला- हम सही

सामान्य प्रशासन का आदेश सितंबर 2022 में आया और प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम जनवरी 2022 में आ चुका था। ऐसे में भूतलक्षीय प्रभाव से तो फार्मूला लागू नहीं हो सकता। अभ्यर्थियों का यह आरोप भी अफवाह है कि प्रावधिक अनारक्षित में सिर्फ सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी हैं। दरअसल, कटआफ के अनुसार जो अभ्यर्थी दायरे में आ रहे हैं, हम श्रेणी का भेद छोड़ सभी को अनारक्षित में शामिल करते हैं। हमारे पास पूरे रिकार्ड हैं। किसी ने कोर्ट में याचिका लगाई है। हम वहां सभी तथ्य रखेंगे।