सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: भारत का चिपको आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था, जिसने वन संरक्षण और पर्यावरण जागरूकता के क्षेत्र में नई दिशा दी। इस आंदोलन ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में पर्यावरणीय आंदोलनों को प्रेरित किया।

चिपको आंदोलन का प्रारंभ
26 मार्च 1974 को उत्तराखंड के रैणी गांव में गौरा देवी और 27 अन्य महिलाओं ने पेड़ों की कटाई का विरोध किया। ठेकेदारों द्वारा जंगल को काटने की योजना बनाई जा रही थी, लेकिन महिलाओं ने पेड़ों को गले लगाकर विरोध किया। “चिपको” शब्द का अर्थ है ‘गले लगाना’ और इस प्रतीकात्मक विरोध ने यह संदेश दिया कि ये पेड़ गांव वालों की आजीविका का हिस्सा हैं और उनका कटना उनके अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है।

महिलाओं की अहम भूमिका
चिपको आंदोलन में महिलाओं ने मुख्य भूमिका निभाई। गौरा देवी और अन्य महिलाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक विकास में महिलाएं कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

पर्यावरणीय नीतियों पर प्रभाव
चिपको आंदोलन का सबसे बड़ा योगदान यह था कि इसने भारत की पर्यावरणीय नीतियों को प्रभावित किया। 1980 में वन संरक्षण अधिनियम पास किया गया, जिसने वनों की कटाई पर सख्त प्रतिबंध लगाए और जैव विविधता की सुरक्षा सुनिश्चित की। इसके साथ ही संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम जैसी योजनाओं ने सरकार और स्थानीय समुदायों के बीच साझेदारी को मजबूत किया।

चिपको की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है
आज, 51 साल बाद भी, चिपको आंदोलन की प्रासंगिकता बनी हुई है। जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के समय में, चिपको आंदोलन का संदेश और भी महत्वपूर्ण हो गया है।

वनवासियों के अधिकारों की लड़ाई
वर्तमान में वनवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई जारी है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लाखों वनवासियों को जंगल से बेदखल करने के आदेश पर रोक लगाई गई थी, जो यह दिखाता है कि हमारे वनवासियों के अधिकारों की सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण है।

सामुदायिक भागीदारी का महत्व
चिपको आंदोलन ने हमें सिखाया कि पर्यावरण संरक्षण का सबसे अच्छा तरीका सामुदायिक भागीदारी है। विकास मॉडल ऐसा होना चाहिए, जो केवल आर्थिक विकास पर केंद्रित न हो, बल्कि पर्यावरण और समुदायों को प्राथमिकता दे।

आज की चुनौतियां
वन अधिकार अधिनियम 2006 वनवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए लाया गया था, लेकिन इसका क्रियान्वयन धीमा है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वन संरक्षण और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा की जाए, ताकि हमारे पर्यावरण और समाज दोनों का भविष्य सुरक्षित हो सके।

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