आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती…

ये लाइन कहते-कहते दर्शन कुमार रुक गए, कुछ सेकेंड बाद उन्होंने कहा- मैंने अपनी जिंदगी में बहुत संघर्ष देखा है, लेकिन जब मुसीबत बड़ी लगती थी तो इस कविता से खुद की हौसला अफजाई करता हूं।

जब से मैं एक्टिंग फील्ड में उतरा हूं तब से ही हर पड़ाव पर मुझे ठोकर मिली है। ऑडिशन देने जाता तो लोग NOT FIT कहकर रिजेक्ट कर देते। पैसों की कमी इतनी थी बिस्किट पानी में भिगो कर खाता और पेट भरता। जिंदगी के हर संघर्ष को बताऊं तो पूरा दिन निकल जाएगा, मैंने इतना संघर्ष देखा है।

सारी बातें मैंने दर्शन कुमार से फोन पर कीं। दूर बैठे मैंने उनके चेहरे के हाव-भाव तो नहीं देखे, लेकिन उनकी आवाज में दर्द साफ सुनाई दे रहा था।

कहानी में आगे बढ़ने से पहले एक नजर दर्शन कुमार के करियर पर-

दर्शन कुमार पहली बार फिल्म मैरी कॉम में लीड रोल में दिखे थे। इससे पहले उन्होंने छोटी बहू, बाबा ऐसो वर ढूंढो जैसे टीवी शोज में काम किया था। NH 10, सरबजीत, बागी 2, तूफान और कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्मों में भी उन्होंने दमदार एक्टिंग की है। ये फैमिली मैन और आश्रम जैसी वेब सीरीज का भी हिस्सा रहे हैं।

थोड़ी औपचारिकता के बाद मैंने उनसे सवाल किया कि बचपन कैसा बीता?

वो कहते हैं, मेरा जन्म दिल्ली के किशनगढ़ में हुआ था। परिवार में मां-पापा, मैं और एक छोटा भाई है। हर बच्चों की तरह मेरा बचपन भी सामान्य बीता। पापा की सरकारी नौकरी थी तो वो अक्सर काम के सिलसिले में बाहर ही रहते थे। हफ्ते या महीने में एकाध बार वो घर आ जाते थे।

मां ने अकेले ही हमारी परवरिश की है। वो टीचर थीं, लेकिन हम दोनों भाइयों की अच्छी परवरिश के लिए उन्होंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी। ये उनकी मेहनत ही थी कि मैं हमेशा पढ़ाई में अच्छा रहा और स्कूल में टॉप किया।

एक्टिंग का शौक कैसे लगा?

ये सुनकर वो हंसते हुए कहते हैं- मुझे हमेशा से लगता है कि मैं एक्टिंग के लिए बना हूं। स्कूल के दिनों से ही मैं प्रेयर में पार्टिसिपेट करता था। एक टीचर थे, उन्होंने एक दिन मुझसे कहा कि मुझे एनुअल फंक्शन में एक नाटक करना चाहिए। एक्टिंग तो पसंद थी ही, उसके साथ मैं अच्छा लिख भी लेता था। टीचर की बात मान कर मैंने फंक्शन में नाटक किया। उस नाटक को लोगों ने बहुत पसंद किया और खूब तारीफ भी की।

स्कूल के बाद मैंने दिल्ली का एक्ट वन एक्टिंग स्कूल जॉइन कर लिया। कुछ दिनों तक वहां क्लास करने के बाद मैंने मुंबई जाने का फैसला किया।

मैं 2004 में मुंबई आ गया। उस वक्त तो इतने पैसे भी नहीं थे कि फास्ट ट्रेन का टिकट ले सकूं जिससे जल्दी मुंबई जा सकूं। जैसे-तैसे पैसों का जुगाड़ कर मुंबई आया। मुंबई मेरे लिए बिल्कुल नया शहर था। यहां पर कोई रिश्तेदार नहीं था। मेरी एक टीचर थीं, उनके बेटे जो आज एक सफल मॉडल हैं, मैं उनके घर 10 दिन तक रहा। फिर उन्होंने मुझे आराम नगर में किराए पर एक घर दिला दिया। वहां हम तीन दोस्त एक साथ रहते थे।

मुझे पता था कि इस फिल्म इंडस्ट्री में काम आसानी से नहीं मिलेगा, तो मैंने बहुत मुश्किल से नीना गुप्ता और राजेन्द्र गुप्ता का थिएटर जॉइन कर लिया। यहां पर काम करके बहुत कुछ सीखने को मिला। फिर मैंने फिल्मों के लिए ऑडिशन देना शुरू कर दिया।

ये ऑडिशन देने वाला समय सबसे ज्यादा दुखदायी था। पैसे ज्यादा नहीं रहते थे। खाने के साथ रूम रेंट भी देखना पड़ता था। इस वजह से मैं 6-7 किलोमीटर पैदल ही ऑडिशन देने चला जाया करता था।