आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : आज कहानी एक ऐसे एक्टर की, जिसकी जिंदगी ही किसी फिल्मी कहानी जैसी है। जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था, वो ब्रिटिश सेना में थे। दूसरा विश्वयुद्ध लड़ा, फिर देश की आजादी के लिए सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए। ब्रिटिश सरकार की खिलाफत के कारण इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, साथियों ने इन्हें बचा लिया। लंबे समय तक घर और गांव वाले इन्हें मरा ही समझते रहे। एक दिन अंग्रेज इन्हें ट्रेन से दूसरे शहर ले जा रहे थे, तो अपने गांव के स्टेशन पर चिट्ठी फेंककर ये सूचना घरवालों तक भिजवाई कि ये जिंदा हैं।
ये कलाकार थे नजीर हुसैन। नजीर ने हिंदी सिनेमा में करीब 500 फिल्मों में काम किया। नजीर ही वो शख्स थे, जिन्होंने भोजपुरी सिनेमा की नींव रखी। नजीर ने ज्यादातर पिता, दादा और चाचा जैसे रोल ही फिल्मों में किए। 500 फिल्में देने और भोजपुरी सिनेमा को शुरू करने के बावजूद इन्हें कभी कोई सम्मान नहीं मिला।
आज की अनसुनी दास्तानें में कहानी इन्हीं नजीर हुसैन की…
नजीर हुसैन का जन्म 15 मई 1922 को उत्तर प्रदेश के गांव उसिया में हुआ था। पिता शहबजाद खान इंडियन रेलवे में गार्ड हुआ करते थे। जब होश संभाला तो इन्हें भी पिता की सिफारिश से रेलवे में फायरमैन की सरकारी नौकरी मिल गई। कुछ महीने बाद फायरमैन की नौकरी से उकताकर इन्होंने ब्रिटिश आर्मी जॉइन कर ली। उसी समय जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो आर्मी ने इन्हें जंग के मैदान पर पहुंचा दिया। कुछ समय के लिए नजीर की पोस्टिंग मलेशिया और सिंगापुर में थी। माहौल बिगड़ा तो इन्हें वॉर के दौरान बंदी बनाकर मलेशिया की जेल में कैद कर दिया गया। हालांकि, कुछ समय बाद इन्हें रिहा कर भारत भेज दिया गया।
आजादी की लड़ाई में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का दिया साथ
भारत वापस आए तो अंग्रेजों की गुलामी से इनका मन भर चुका था। 40 के दशक में पहले ही देश में आजाद हिंद फौज बन चुकी थी जिसकी कमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस के हाथ में थी। सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर नजीर भी इंडियन नेशनल आर्मी में भर्ती हो गए। बचपन से ही नजीर को लिखने में महारत हासिल थी तो इनके हुनर को समझकर सुभाष चंद्र बोस ने प्रचार-प्रसार के लिए लिखने का काम सौंप दिया।
फांसी दी जाने वाली थी, साथियों ने ट्रेन पर हमला कर बचाया था
अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने पर एक बार इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। नजीर को लाल किले में फांसी दी जाने वाली थी, लेकिन रास्ते में ही दोस्तों ने अंग्रेजों की गाड़ी पर हमला कर इन्हें बचा लिया।
आजादी के लिए आवाज उठाई तो अंग्रेजों ने भेजा जेल
जब लड़ाई बढ़ने के बाद अंग्रेजों ने आजादी की मांग करने वाले आजाद हिंद फौज के नौजवानों को जेल में डाल दिया, तो उन लोगों में नजीर भी शामिल थे। देश का माहौल बेहद खराब था और अंग्रेज कई भारतीयों को मार रहे थे। कई दिनों तक नजीर को भी बंदी बनाकर रखा।