सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: राष्ट्रीय सम्मेलन: “योग – सांस्कृतिक सिम्फनी का एक उपकरण, आध्यात्मिक आयाम” हाल ही में कैवल्यधाम, लोनावाला में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। दो दिनों में आयोजित इस कार्यक्रम में जैनिज्म, हिंदूवाद, बौद्ध धर्म, इस्लाम, क्रिश्चियनिटी और पारसी परंपराओं के आध्यात्मिक नेताओं ने भाग लिया और योग के एकता और आध्यात्मिक पहलुओं पर चर्चा की।
परमाचार्य, परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती, पद्मभूषण पुरस्कार विजेता और बिहार स्कूल ऑफ योग के प्रमुख, ने समापन भाषण दिया। उन्होंने कहा, “योग कोई दर्शन नहीं है, यह ज्ञान है, और योग को एक जीवनशैली के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि अभ्यास या व्यायाम के रूप में। संस्कृति मानव स्वभाव की रचनात्मक और सकारात्मक अभिव्यक्ति है, और जीवन में गुणात्मक परिवर्तन की आवश्यकता है। हमारा जीवन रचनात्मक, निर्माणात्मक, प्रेरणादायक और सकारात्मक व्यवहार के साथ जुड़कर संचालित होना चाहिए। आत्म-अवलोकन और आत्म-सुधार योग के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं और ये ध्यान में योगाभ्यासियों के लिए बुनियादी प्रारंभिक बिंदु हैं, जहां समझ और मनन, यानी बुद्धि और मन दोनों पर ध्यान दिया जाता है।”
यह सम्मेलन 18 और 19 अक्टूबर 2024 को प्रमुख आध्यात्मिक नेताओं द्वारा आयोजित किया गया, जिनमें स्वामी विश्वेश्वरानंद जी गिरी, हरिद्वार के सूरतगिरी बंगला के अध्यक्ष, और महामहिम आचार्य लोकेश मुनि जी, अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक शामिल हैं। अन्य प्रमुख व्यक्तियों में महामहिम चोक्यांग पलगा रिनपोछे, तिब्बती बौद्ध लामा, माँ हंसा जी योगेंद्र, योग संस्थान की अध्यक्ष, और श्री सुरेश प्रभु, शताब्दी समिति के अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शामिल थे। इस कार्यक्रम की शुरुआत इस चर्चा से हुई कि कैसे योग सांस्कृतिक एकता और आध्यात्मिक विकास के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करता है।
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