नई दिल्ली । यूक्रेन और रूस से जंग की वजह से दुनिया भर के व्यापार का गणित बिगड़ गया है। इस दौरान क्रूड ऑयल, मेटल, एडिबल ऑयल, गेहूं आदि कमोडिटी के दाम में उछाल आ गया है लेकिन भारत को एक फायदा भी हुआ है। यह फायदा है गेहूं के निर्यात में तेजी।

इससे भारत के गेहूं किसानों की बल्ले-बल्ले है। केंद्र सरकार के फूड सेक्रेटरी सुधांशु पांडेय ने बताया कि यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध के कारण वैश्विक कीमतों में उछाल के बाद भारत से गेहूं के निर्यात में तेजी आई है। उन्होंने बताया कि देश से होने वाला कुल गेहूं निर्यात चालू वित्त वर्ष में अब तक 66 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर को छू चुका है।

यह आंकड़ा बीते फरवरी के अंत में ही छुआ जा चुका है। उन्होंने कहा कि यह भारतीय निर्यातकों के लिए यह एक अवसर है। क्योंकि गेहूं के अन्य वैश्विक उत्पादकों की तुलना में देश में गेहूं की नई फसल 15 मार्च से उपलब्ध हो जाएगी। इसलिए इस समय जो वैश्विक बाजार में गेहूं की जो रिक्ति हुई है, उसे भारत भर सकता है।

उल्लेखनीय है कि रूस और यूक्रेन मिलकर वैश्विक गेहूं आपूर्ति के लगभग एक चौथाई हिस्से का निर्यात करते हैं। उनकी गेहूं की फसल इस साल अगस्त और सितंबर में पकेगी। नतीजतन, वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतें पहले ही बढ़ चुकी हैं और 24,000-25,000 रुपए प्रति टन के दायरे में चल रही हैं।

उन्होंने बताया ‎कि अब तक गेहूं का निर्यात वित्त वर्ष 2012-13 में हासिल किए गए 65 लाख टन के ऐतिहासिक उच्च स्तर को पार कर चुका है। अभी भी एक महीना बाकी है, आप इस साल लगभग 70 लाख टन से अधिक निर्यात की उम्मीद कर सकते हैं। यह भारतीय किसानों और निर्यात के लिए अच्छी खबर है।

कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार भारत का गेहूं उत्पादन फसल वर्ष 2021-22 (जुलाई-जून) में 11 करोड़ 13.2 लाख टन के नए रिकॉर्ड को छूने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष में यह उत्पादन 10 करोड़ 95.9 लाख टन था। रबी की मुख्य फसल गेहूं 15 मार्च से बाजार में आने लगेगी।

देश भर के सरकारी गोदामों में गेहूं का सरप्लस भंडार भी है। भारतीय चीनी की मांग रूस-यूक्रेन संकट के कारण नहीं बल्कि वैश्विक बाजार में निर्यात के लिए चीनी की सीमित आपूर्ति होने के कारण बढ़ रही है, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय दरों में वृद्धि हुई है। खाद्य तेलों के मामले में जिसके लिए भारत काफी हद तक आयात पर निर्भर है। हमारी स्थिति काफी आरामदायक है।