बीजिंग । चीन के विदेश मंत्री वांग यी हाल ही में मालदीव और श्रीलंका के दौरे पर गए थे। वांग का यह दौरा पूरी तरह से नाकामयाब रहा, क्योंकि श्रीलंका और मालदीव सरकार ने महसूस किया है कि चीन द्वारा उनकी संप्रभुता को कर्ज जाल के जरिए धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है। यह बात एक यूरोपीय थिंक टैंक ने बताई है।

यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) ने बताया है कि श्रीलंका देश की गंभीर आर्थिक स्थिति को लेकर परेशान रहा। श्रीलंका आशंकित था कि उनकी स्थिति चीन के लिए मुनासिब हो सकती है, जैसा कि पहले हंबनटोटा पोर्ट के साथ हुआ था, लेकिन सिर्फ यही कारण नहीं था। दोनों देशों को संप्रभुता की अधिक चिंता रही। मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह ने भारत के साथ अधिक निकटता से बातचीत करके चीनी प्रभाव और कर्ज के जाल को सीमित करने की कोशिश की है।

सन 2018 में इब्राहिम सोलिह मालदीव के राष्ट्रपति बने थे। उन्होंने चीन समर्थक नेता अब्दुल्ला यामीन की जगह ली थी और तब से भारत के साथ मालदीव के संबंध पटरी पर वापस आ गए हैं। मालदीव भी श्रीलंका की तरह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है जिसे अमेरिका छोटे देशों के लिए कर्ज का जाल बताता है।

मालदीव की सोलिह सरकार ने चीन के साथ समीकरण को संतुलित करने की भी मांग की है। श्रीलंका की इकॉनमी की हालात किसी से छिपी नहीं है। देश एक गहरे आर्थिक संकट में उलझा हुआ है।  नवंबर 2021 में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक गिर गया है जो कि सिर्फ एक महीने के आयात को बनाए के लिए पर्याप्त है। क्षेत्र में चीनी प्रभाव को और बढ़ाने के उद्देश्य से एक नया प्रस्ताव वांग यी ने श्रीलंका के विदेश मंत्री जी एल पीरिस के साथ बातचीत के दौरान रखा था। उन्होंने हिंद महासागर द्वीप देशों के विकास के लिए एक मंच की स्थापना का प्रस्ताव रखा।