सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: वरिष्ठ साहित्यकार जगन्नाथ प्रसाद चौबे के जन्मदिवस पर वनमाली जयंती समारोह का आयोजन स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी के सभागार में किया गया। इस दौरान कार्यक्रम में संतोष चौबे द्वारा संपादित किताब “कला का आदर्श – वनमाली: कुछ निबंध कुछ विचार” का लोकार्पण एवं रंग संगीत का आयोजन हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. श्रीराम परिहार रहे, आत्मीय सान्निध्य मुकेश वर्मा, अध्यक्षता संतोष चौबे ने की। विशिष्ठ अतिथि के तौर पर स्कोप ग्लोबल स्किल्स यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी, वहीं वक्ताओं में बलराम गुमास्ता, डॉ. विजय पगारे और विनय उपाध्याय शामिल रहे।
समारोह की शुरुआत जगन्नाथ प्रसाद चौबे जी को श्रद्धांजलि देकर पुष्प अर्पित कर की गई। इसके बाद संतोष चौबे द्वारा संपादित किताब “कला का आदर्श वनमाली: कुछ निबंध कुछ विचार” का सभी अतिथियों ने लोकार्पण किया। यह पुस्तक वनमाली जी के जीवन पर आधारित है जिसमें उनके जीवन के प्रसंग और उनके साहित्य की झलक देखने को मिलती है। कार्यक्रम में वनमाली पत्रिका के जून माह के अंक का लोकार्पण भी किया गया।

 Vanamali Jayanti Celebration: Book launch and Rang Sangeet organized.
अपने वक्तव्य में जगन्नाथ प्रसाद चौबे के स्टूडेंट रहे डॉ. विजय पगारे ने उनके साथ के अपने अनुभवों को याद किया और बताया कि जगन्नाथ चौबे उनके प्रिंसिपल थे। अनुशासन, ईमानदारी, कर्मनिष्ठा उनके व्यक्तित्व के प्रमुख गुण थे। इन्हीं गुणों का विकास वे छात्रों में करने का प्रयास करते थे। इसके लिए छात्रों को वे अक्सर विभिन्न प्रकार के कार्यों से जुड़े और अनुभवों से जीवन की सीख देते।
वहीं वरिष्ठ उद्घोषक एवं कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने वनमाली जी पर किए अपने शोध की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमने वनमाली जी के 100 से अधिक विषयों को ढूंढा और उनके जीवन का एक डेटा तैयार किया। इस कार्य के दौरान वनमाली जी के व्यक्तित्व और जीवन की कई बातें एवं अनुभवों का दस्तावेजीकरण हुआ। आगे उन्होंने कहा कि वनमाली जी एक आदर्श पुरुष और शिक्षक थे। वनमाली जी को याद करना मतलब आत्म तलाश करना।
साहित्यकार बलराम गुमास्ता ने अपने वक्तव्य में कहा कि उन्हे कहानी लिखने की प्रेरणा जगन्नाथ प्रसाद चौबे से मिली। आगे उन्होंने साहित्य एवं कला पर चर्चा करते हुए कहा कि कहानियों में जिस तरह से आवेग, गति और शब्दों को पिरोया जाता है वह भी एक कला है। कला आत्मा की उपज है।
मुख्य अतिथि श्री राम परिहार ने कहा कि वनमाली जी सभी के आदर्श थे, संस्कृति पुरुष थे। वनमाली जी के आदर्शों को सभी छात्रों को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
मुकेश वर्मा जी ने बताया कि उनकी कहानियों में रूचि थी तब वनमाली जी के बारे में पता चला था। उन्होंने बताया कि वनमाली जी ने लेखन कला की शैली में बदलाव किया। व्यंग्य को जोड़ा जिसके चलते व्यंग्य कथा के प्रथम पुरुष थे वनमाली जी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि कथाकार एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के चांसलर संतोष चौबे ने अपने पुराने किस्से सुनाए और “कला का आदर्श” पुस्तक पर विस्तृत चर्चा की।
कार्यक्रम के अंत में टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों द्वारा रंग संगीत की प्रस्तुति दी गई।