पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अक्सर अपने विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन हाल ही में उन्होंने रिश्वतखोरी को लेकर जो टिप्पणी की, उसने वैश्विक लोकतंत्र और शासन व्यवस्था पर एक नई बहस छेड़ दी है। ट्रंप ने खुलकर यह स्वीकार किया कि रिश्वत केवल एक ‘बिजनेस ट्रांजेक्शन’ है और इसे हर कोई इस्तेमाल करता है—सीधे शब्दों में कहें तो उन्होंने घूसखोरी को एक रणनीतिक औजार की तरह जायज ठहराने की कोशिश की।

क्या ट्रंप ने रिश्वत को ‘वैध’ ठहराया?
ट्रंप का यह बयान केवल व्यक्तिगत विचार नहीं है, बल्कि यह एक गहरी समस्या को उजागर करता है—क्या भ्रष्टाचार अब एक सामान्य राजनीतिक हथियार बन चुका है? जब एक पूर्व राष्ट्रपति सार्वजनिक रूप से रिश्वतखोरी को स्वीकार्य रणनीति मानता है, तो यह लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरे की घंटी है। यह न केवल नैतिक मूल्यों पर हमला है, बल्कि लोकतंत्र, न्याय प्रणाली और शासन व्यवस्था की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करता है।

रिश्वत: सत्ता का नया ट्रंप कार्ड?
आज कई देशों में रिश्वतखोरी केवल एक गैरकानूनी गतिविधि नहीं रही, बल्कि यह एक सत्ता-संचालन का साधन बन गई है।

राजनीतिक चंदा और इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए सरकारों को प्रभावित करना।
बड़े व्यापारिक सौदों को रिश्वत के माध्यम से नियंत्रित करना।
न्यायपालिका और मीडिया को मैनेज करके अपने पक्ष में माहौल बनाना।
ट्रंप का बयान इसी हकीकत को सामने लाता है—अब रिश्वत केवल छिपकर दिए जाने वाला धन नहीं, बल्कि एक घोषित रणनीति बन गई है।

लोकतंत्र की नैतिकता बनाम शक्ति का खेल
रिश्वत का असली खतरा यह नहीं है कि यह गलत है, बल्कि यह है कि इसे अब गलत मानने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। जब सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग इसे जायज ठहराने लगें, तो यह समाज के नैतिक ताने-बाने को गहरा नुकसान पहुंचा सकता है।

सरकारी अनुबंध और नीतियां केवल उन्हीं के पक्ष में बनाई जाती हैं, जो रिश्वत देने में सक्षम होते हैं।
आम जनता की समस्याएं हाशिए पर चली जाती हैं, क्योंकि सत्ता में बैठे लोग केवल “अमीर डीलमेकर्स” से प्रभावित होते हैं।
चुनावी प्रक्रिया कमजोर हो जाती है, क्योंकि पारदर्शिता और निष्पक्षता की जगह धनबल और सौदेबाजी ले लेती है।
क्या रिश्वतखोरी का ‘नैतिककरण’ संभव है?
ट्रंप का बयान कहीं न कहीं इस खतरनाक धारणा को बढ़ावा देता है कि रिश्वत एक सामान्य और आवश्यक प्रक्रिया है। लेकिन अगर इसे सामान्य मान लिया गया, तो फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का क्या होगा?

अगर रिश्वत को जायज मान लिया जाए, तो न्याय कहां रहेगा?
अगर नीति-निर्माण पैसों से बिकेगा, तो आम नागरिकों का विश्वास कैसे कायम रहेगा?
क्या भ्रष्टाचार केवल उन लोगों का हथियार बन जाएगा, जिनके पास सत्ता और धन है?
ट्रंप का बयान और भारत
भारत में भी भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। कई मामलों में यह सामने आया है कि बड़ी कंपनियां सरकारों पर प्रभाव डालने के लिए पैसे का उपयोग करती हैं।

क्या राजनीतिक चंदा एक वैध रिश्वत का ही रूप है?
क्या बड़े कॉर्पोरेट डील्स इसी प्रणाली का हिस्सा हैं?
क्या भारत में भी लोकतंत्र केवल पैसे वालों का खेल बनकर रह गया है?
निष्कर्ष: रिश्वत को ‘ट्रंप कार्ड’ बनने से रोकना जरूरी
डोनाल्ड ट्रंप का बयान भले ही अमेरिका में दिया गया हो, लेकिन इसका असर पूरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों पर पड़ेगा। अगर भ्रष्टाचार को ‘नैतिक’ बनाकर पेश किया जाने लगे, तो इससे पूरी शासन व्यवस्था कमजोर हो सकती है।

न्यायपालिका और प्रशासन को मजबूत बनाना होगा।
चुनावी वित्तीय पारदर्शिता अनिवार्य करनी होगी।
जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर होना पड़ेगा।
अगर हम रिश्वत को एक “सामान्य बिजनेस ट्रांजेक्शन” के रूप में स्वीकार करने लगें, तो आने वाले समय में लोकतंत्र केवल पैसे और शक्ति का खेल बनकर रह जाएगा। हमें यह तय करना होगा कि हम अपने लोकतंत्र को “जनता के लिए, जनता द्वारा” रखना चाहते हैं, या “धनबल और सत्ता के खेल” में तब्दील करना चाहते हैं।

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