सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ई प्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : भोपाल के रविंद्र भवन के गौरांजनी सभागृह में राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस के उपलक्ष्य में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इंदर सिंह परमार ने जनजातीय समाज के ऐतिहासिक, सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इतिहास के पन्नों में जनजातीय नायकों के संघर्ष, शौर्य और बलिदान को सही दृष्टिकोण से दर्ज नहीं किया गया, जिससे उनके कृतित्व के साथ अन्याय हुआ।
जनजातीय समाज का गौरवपूर्ण योगदान
मंत्री परमार ने अपने उद्बोधन में कहा कि जनजातीय नायक न केवल अपने समाज बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अपना बलिदान दिया, लेकिन उनके योगदान को अक्सर इतिहास में भुला दिया गया। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की सराहना करते हुए इसे इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से पुनः लिखने का अवसर बताया।
श्री परमार ने इस बात पर भी जोर दिया कि जनजातीय समाज प्रकृति पूजक रहा है। उनकी परंपराओं में जल स्रोतों, सूर्य और अन्य ऊर्जा स्रोतों के प्रति कृतज्ञता का भाव शामिल है। उन्होंने जनजातीय समाज की कला और विज्ञान को भी याद किया, जैसे कि उनके द्वारा बनाए गए ऐसे लौह उपकरण, जो आज भी बिना जंग के सुरक्षित हैं।
जनजातीय गौरव दिवस का महत्व
कार्यशाला के दौरान, प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा निदेशक अनुपम राजन ने कहा कि जनजातीय समाज के योगदान को मान्यता देना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में जनजातीय बलिदानियों की अनदेखी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
अपर सचिव लक्ष्मण सिंह मरकाम ने कहा कि मध्य प्रदेश ने जनजातीय गौरव दिवस की अवधारणा को पहली बार साकार किया और 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इसे राष्ट्रीय पहचान मिली। उन्होंने जनजातीय समाज को अंग्रेजों के खिलाफ मुखर विद्रोह करने वाला सबसे सशक्त समुदाय बताया।
शोध और अध्ययन पर बल
मंत्री परमार ने घोषणा की कि प्रदेश के सभी विश्वविद्यालय और महाविद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा और जनजातीय योगदान से संबंधित साहित्य से समृद्ध किए जाएंगे। इसके अलावा, जनजातीय नायकों के कृतित्व पर आधारित शोध और अध्ययन को बढ़ावा दिया जाएगा।
कार्यशाला की गतिविधियां
कार्यशाला में जनजातीय नायकों के बलिदान और उनके ऐतिहासिक, सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान पर चर्चा हुई। वीरांगना रानी दुर्गावती की 500वीं और धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में विभिन्न गतिविधियों की योजना बनाई गई।
शैक्षणिक संस्थानों में निबंध प्रतियोगिताओं और प्रदर्शनियों के माध्यम से जनजातीय नायकों की विरासत को छात्रों तक पहुंचाने पर जोर दिया गया। प्रत्येक महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में जनजातीय गौरव से संबंधित प्रदर्शनियां स्थापित की जाएंगी।
उद्घाटन और समापन
कार्यशाला का उद्घाटन राजभवन जनजातीय प्रकोष्ठ की विषय विशेषज्ञ दीपमाला रावत ने किया। आयुक्त उच्च शिक्षा निशांत बरबड़े ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्राचार्य, विषय विशेषज्ञ और शिक्षाविद उपस्थित रहे।
जनजातीय नायकों के योगदान को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने के इस प्रयास को सभी ने सराहा। इस कार्यशाला ने जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास को राष्ट्रीय परिदृश्य पर लाने के महत्व को रेखांकित किया।
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