सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर में 21 दिनों तक चलने वाली राष्ट्रीय कार्यशाला  के तृतीय दिवस के प्रथम सत्र में काशी हिन्दु विश्वविद्यालय, वाराणसी से आये हुए विषय विशेषज्ञ शिवराम शर्मा ने भाव प्रकाश ग्रन्थ में निरूपित आलम्बन् विभावों को व्याख्यायित करते हुए नाट्य रसों में आलम्बन तत्व का उदाहरण सहित प्रतिभागियों को बोधन कराया ।

द्वितीय सत्र में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर के निदेशक रमाकान्त पाण्डेय ने भावप्रकाश ग्रन्थ में लिखे गये व्यभिचारी भावों को उद्घाटित करते हुए लोक में किस प्रकार भाव व्यभिचरित होते हैं उसे विस्तार पूर्वक प्रतिभागियों को बतलाया। आपने भरतमुनि के नाट्यशास्त्र और शारदातनय के भावप्रकाश में निरूपित व्यभिचारी भावों की तुलनात्मक विवेचना की। आपने बताया कि शारदातनय द्वारा लिखित भावप्रकाश मानव के चित्त में स्थित भावों को समझने का कोश है। यह ग्रन्थ नाट्य प्रयोग और अभिनय की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भावप्रकाश में चिन्हित भावों की उत्कर्षता भारतीय दार्शनिकता के नवीन आयाम को उद्घाटित करती है। रंगकर्मियों को इस ग्रन्थ के प्रायोगिक पक्ष को लेकर अपने रंगकर्म को और प्रभावपूर्ण बनाना चाहिये।

तृतीय एवं चतुर्थ सत्र में इन्ही भावों को लेकर कल्याणी भगरे और डॉ. चन्नावासव स्वामी ने रंगकर्म के प्रारम्भिक सिद्धान्तों का प्रतिभागियों को अनुप्रयोग और अभ्यास कराया।

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