भोपाल । मप्र में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। दावेदारों ने भी सक्रियता बढ़ा दी है। वहीं दोनों पार्टियों में मंथन तेज हो गया है। लेकिन एक बात तो यह है कि उपचुनावों में प्रत्याशी कोई भी क्यों न हो साख तो शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ की ही दांव पर होगी। भाजपा जहां शिवराज सरकार, भरोसा बरकरार के भरोसे है, तो कांग्रेस कमल नाथ सरकार के 15 महीने कार्यकाल के ओबीसी वर्ग को आरक्षण और किसानों की कर्ज माफी पर दांव लगाने को तैयार है। हालांकि लोकसभा की एक और विधानसभा की तीन सीटों पर जीत-हार से सत्ता की सेहत पर फर्क नहीं पड़ेगा।
दरअसल, पिछले साल शिवराज सिंह चौहान ने जब चौथी बार सत्ता की कमान संभाली, तब कोरोना मप्र में दस्तक दे चुका था। चौहान इसकी पहली लहर से प्रदेश को उबारने में पूरी तरह कामयाब हो पाते, इससे पहले ही दूसरी लहर ने भी अपना असर दिखाया। ऐसे में उनका अब तक का करीब 16 महीने का कार्यकाल कोरोना की चुनौतियों से निपटने में ही निकल गया। समर्थन मूल्य पर खरीदी, कमजोर तबके को मदद, जरूरतमंद विभिन्न वर्गों के लोगों को आर्थिक सहायता सहित कई उपलब्धियां कोरोना से इतर रहीं हैं।
भाजपा गिनाएगी शिवराज की उपलब्धियां
कोरोना संक्रमितों के लिए इलाज, दवा, इंजेक्शन, ऑक्सीजन और बेड की व्यवस्था के अलावा शिवराज सरकार ने वैक्सीनेशन में रिकॉर्ड स्थापित किया है। ये उपलब्धियां चूंकि चौहान के खाते में जाती हैं और वह भाजपा का जिताऊ चेहरा रहे हैं तो पार्टी कोई जोखिम लेने के बजाय चौहान को आगे कर रही है। इसका एक और लाभ होगा कि प्रदेश में सत्ता का चेहरा बदलने की अफवाहों का खुद ही खंडन हो जाएगा और बदलाव की अटकलें खारिज हो जाएंगी। भाजपा के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार प्रदेश की शिवराज सरकार और संगठन की शक्ति के आधार पर भाजपा ये उपचुनाव लड़ेगी। बहुत स्वाभाविक है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि जो जनकल्याणकारी कार्यक्रमों, योजनाओं और सेवा व संवेदना से स्थापित हुई है, वह हमारा एक मजबूत पक्ष है।
कांग्रेेस को ओबीसी आरक्षण और किसान कर्ज माफी का सहारा
दूसरी तरफ, कांग्रेस ने उपचुनाव के लिए कमल नाथ के 15 महीने के शासन को उपलब्धि भरा बताकर ओबीसी वर्ग को आरक्षण और किसान कर्ज माफी का मुद्दा उठाने की तैयारी की है। कांग्रेस का दावा है कि कमल नाथ सरकार ने ही ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण की कवायद शुरू की थी। कांग्रेस का ये भी दावा है कि यदि कमल नाथ की सरकार होती तो अब तक प्रदेश के सभी पात्र किसानों के ऋण माफ हो चुके होते। कांग्रेसी बखूबी जानती है कि इन उपचुनाव के परिणाम सत्ता के समीकरण प्रभावित नहीं कर सकते लेकिन इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि यदि भाजपा को इन चुनावों में नुकसान होता है तो 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जनता के बीच भाजपा के खिलाफ संदेश जाएगा और यही कांग्रेस की रणनीति का अहम हिस्सा है। उपचुनाव के परिणाम का असर स्थानीय निकायों के चुनाव पर भी पड़ेगा।
कमल नाथ 2018 की तरह एक बार फिर ऐसा माहौल बनाने की कोशिश में है जिसमें सत्ता विरोधी लहर का लाभ उन्हें मिल सके।