सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क– इंटीग्रेटेड ट्रेड- न्यूज़ भोपाल: पंडवानी की लरजती हुंकार, भरथरी की करूण पुकार और चंदेनी की प्रेमिल फुहार जब छत्तीसगढ़ की मटियारी गुंजार लिए माहौल में फैली तो जैसे पोर-पोर उस लोक राग में भीग उठा। ताल पर ताल देते श्रोता परम्परा के संगीत पर निहाल हो उठे। सतरंगी बौछारों से गमकते इस सुहाने मंजर में अचानक आसमान से झरते बादलों ने अनूठी गमक घोल दी।
टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, आरएनटीयू ने विश्व संगीत दिवस पर देशज संगीत की सभा ‘लोकराग’ की यह अनूठी दावत दी। खैरागढ़ से आए सुप्रसिद्ध लोक गायक परमाननद पाण्डे ने अपने साथी जानेश्वर टांडीया के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ के सौंधे गीत-संगीत की सुमधुर प्रस्तुति दी। टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और विश्वरंग के सहयोग से मुक्तधारा सभागार में आयोजित था यह सुरीला समागम। इस विशेष प्रसंग पर वरिष्ठ कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने भारतीय संगीत की विरासत, दर्शन, आध्यात्म और बदलते दौर में उसके वैश्विक विस्तार पर अपना सारगर्भित वक्तव्य दिया। विनय उपाध्याय ने कहा कि सुर सारी दुनिया को कुदरत की नेमत की तरह मिला है लेकिन भारत एक मात्र ऐसा देश है जिसने गहरी साधना से संगीत में इसे प्रार्थना की तरह पाया। यही वजह है कि उत्सव में यह आनंद है तो अवसाद में औषधी की अमृत धारा बनकर जीवन को महका देता है। दुर्भाग्य से बेचैन, बदहवास और भटकन के इस दौर में संगीत रूह का चैन नहीं सिर्फ़ देह का सतही आनंद रह गया है। टेक्नालॉजी ने सरहदों के फासले तो कम किये हैं पर शोर भरे बीहड़ में सच्चे सुरों की तलाश कठिन हो गयी।
आरंभ में टैगोर विश्वविद्यालय की वॉइस चांसलर डॉ. संगीता जौहरी, डीन. रूचि मिश्रा तिवारी, नाट्य विद्यालय के निदेशक मनोज नायर और संगीतकार संतोष कौशिक ने डा. परमानन्द पाण्डे का सारस्वत अभिनंदन किया। कार्यक्रम का संचालन अमित गुप्ता और अनुराग तिवारी ने किया। आभार विक्रांत भट्ट ने व्यक्त किया।