सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करते हुए इसे संसद का विषय बताया। इस निर्णय ने समाज, कानून, और LGBTQIA+ समुदाय के बीच एक नई बहस छेड़ दी है। सवाल यह है कि क्या यह फैसला समानता की ओर एक कदम है, या फिर सामाजिक न्याय की दिशा में एक अधूरा प्रयास?

न्यायालय की दलील और उसकी सीमाएँ

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि विवाह का अधिकार मौलिक अधिकारों में शामिल नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों को संवैधानिक मान्यता देते हुए कहा कि उन्हें गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार है।
लेकिन यह सवाल उठता है कि यदि गरिमा और समानता संविधान के मूल सिद्धांत हैं, तो विवाह जैसी सामाजिक संस्था में इन अधिकारों को शामिल क्यों नहीं किया गया? क्या यह एक बड़े सामाजिक परिवर्तन को टालने का प्रयास है?

सरकार और समाज की भूमिका

केंद्र सरकार ने अदालत में तर्क दिया कि विवाह एक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्था है, और इसे पुनर्परिभाषित करना संसद का दायित्व है। यह सही है कि भारतीय समाज विवाह को धार्मिक और परंपरागत नजरिए से देखता है। लेकिन इसी समाज ने समय-समय पर प्रगतिशील बदलाव भी स्वीकार किए हैं। सती प्रथा, बाल विवाह, और दहेज जैसी कुप्रथाओं का अंत भी इसी समाज में हुआ। तो क्या यह सही समय नहीं है कि समाज LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों को भी पूरी तरह स्वीकार करे?

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता मिलने से न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था भी बदल सकती है।

आर्थिक स्तर पर: संपत्ति के अधिकार, कर लाभ, और उत्तराधिकार जैसे मुद्दों में समानता सुनिश्चित होगी।

सामाजिक स्तर पर: यह समुदाय की पहचान और आत्मसम्मान को मजबूती देगा।

आगे की राह

अब यह जिम्मेदारी संसद की है कि वह इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाए।

समान-लैंगिक जोड़ों के लिए विशेष विवाह अधिनियम में संशोधन करना जरूरी है।

उन्हें जीवनसाथी के अधिकार, सामाजिक सुरक्षा, और कानूनी पहचान देने के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी।

निष्कर्ष

समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एक अधूरा कदम है, लेकिन इसे सकारात्मक नजरिए से देखा जा सकता है। अदालत ने LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों की रक्षा का आह्वान किया है, जो सामाजिक जागरूकता का पहला चरण हो सकता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस अवसर को समानता और न्याय की दिशा में एक ठोस पहल में कैसे बदलते हैं।

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