सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए धार्मिक स्थलों की सुरक्षा से जुड़े मामले में अपना रुख स्पष्ट किया है। उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित शाही जामा मस्जिद पर एक स्थानीय अदालत द्वारा सर्वे का आदेश दिए जाने के बाद यह मामला सुर्खियों में आ गया।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है?
1991 में लागू हुए इस कानून का उद्देश्य भारत में धार्मिक स्थलों के स्वरूप को 15 अगस्त 1947 के बाद से बिना बदलाव के बनाए रखना है। यह कानून सांप्रदायिक सौहार्द और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए लाया गया था। हालांकि, यह कानून पिछले कुछ वर्षों में कई बार विवादों के केंद्र में रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने शाही जामा मस्जिद के सर्वे पर रोक लगाते हुए इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। इस कदम को सांप्रदायिक शांति बनाए रखने और न्यायिक प्रक्रिया को संतुलित करने के रूप में देखा जा रहा है।
पुराने मामले भी चर्चा में
यह पहली बार नहीं है जब यह कानून चर्चा में आया हो। 2023 में वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे की अनुमति दी थी, जिसने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की व्याख्या और इसके दायरे को लेकर नई बहस को जन्म दिया।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
कानूनी और सामाजिक विशेषज्ञों का मानना है कि धार्मिक स्थलों पर इस तरह की जांचें सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित कर सकती हैं। वहीं, कुछ लोग इसे इतिहास के विवादों को सुलझाने का जरिया मानते हैं।
धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करता फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केवल एक कानूनी निर्णय नहीं है, बल्कि यह भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता की जड़ों को और गहरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।