सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य सुधा मूर्ति ने रविवार को इंदौर के डेली कॉलेज में आयोजित फिक्की फ्लो के कार्यक्रम में शिरकत की। इस दौरान उन्होंने वर्क-लाइफ बैलेंस, परिवार, लेखन और जीवन के महत्वपूर्ण अनुभवों को साझा किया। सुधा मूर्ति ने कहा कि आजकल बड़ी संख्या में विदेश जाने वाले लोग वापस भारत लौटने लगे हैं, जो देश की मजबूत अर्थव्यवस्था का परिणाम है। उन्होंने बताया कि 1978 में 100 में से केवल एक व्यक्ति ही विदेश से लौटता था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है और कई लोग कुछ समय विदेश में बिताने के बाद वापस अपने देश लौट रहे हैं।
बच्चों को वास्तविकता से रूबरू कराना जरूरी
सुधा मूर्ति ने बच्चों की परवरिश पर जोर देते हुए कहा कि हर जिद पूरी करने के बजाय बच्चों को वास्तविकता से अवगत कराना चाहिए। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब उनके बच्चे फाइव स्टार होटल में आयोजित दोस्तों की बर्थडे पार्टी से लौटते थे, तो वे उन्हें बस्तियों में ले जाकर यह दिखाती थीं कि वहां के बच्चे भी कितने टैलेंटेड हैं। इससे उनके बच्चों को यह अहसास हुआ कि हजारों रुपए होटल में खर्च करने के बजाय इन बच्चों के सुधार के लिए काम करना बेहतर है।
वर्क-लाइफ बैलेंस पर सुधा मूर्ति के विचार
वर्क-लाइफ बैलेंस पर बात करते हुए सुधा मूर्ति ने कहा, “हमें अपने आप को हमेशा व्यस्त रखना चाहिए।” उन्होंने बताया कि बच्चों को संभालने के दौरान उन्होंने शुरुआत में दिन में केवल 3 घंटे काम किया और धीरे-धीरे इसे 6 घंटे तक बढ़ाया। उनका मानना है कि हर इंसान में क्षमता होती है और महिलाओं में तो पुरुषों से भी अधिक होती है क्योंकि वे घर और बाहर दोनों को संभालती हैं।
लेखन में मातृभाषा का महत्व
सुधा मूर्ति ने अपने लेखन के सफर को साझा करते हुए बताया कि उनकी मां उन्हें रोज़ 25 लाइनें लिखने के लिए कहती थीं, जिससे उन्हें शुरुआत में अच्छा नहीं लगा लेकिन धीरे-धीरे इसमें रुचि बढ़ी। उन्होंने कहा, “लेखन मेरे आंतरिक विचारों का अभिव्यक्ति है।” 29 साल की उम्र में उनकी पहली किताब आई और अब तक उन्होंने 46 किताबें लिखी हैं, जो कन्नड़ और अंग्रेजी में हैं। उनका मानना है कि लेखन में मातृभाषा का विशेष महत्व होता है।