सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: स्त्री 2 को एक साधारण श्रेणी में बांधना मुश्किल है, क्योंकि इसमें प्रेम कहानी, हॉरर कॉमेडी और समाज के बदलते स्वरूप को प्रदर्शित करने वाले कई तत्वों का सम्मिश्रण है। फिल्म की कहानी “सरकटे का आतंक” एक छोटे से गाँव में फैले भूतिया डर और उस पर आधारित मान्यताओं के इर्द-गिर्द घूमती है। गाँव के लोग मानते हैं कि एक अदृश्य शक्ति उन्हें अपनी भेंट चढ़ा रही है, जिसके बीच विक्की और उसके दोस्त इस रहस्य की जांच करने का निर्णय लेते हैं।
प्रेम कहानी का अनोखा तत्व
फिल्म में विक्की (राजकुमार राव) और रहस्यमयी स्त्री (श्रद्धा कपूर) के बीच प्रेम कहानी एक महत्वपूर्ण तत्व है। विक्की एक साधारण लड़का है, जो रहस्यमयी स्त्री से आकर्षित होता है, और उसके साथ एक अनजान जुड़ाव महसूस करता है। यह प्रेम कहानी उस समय और दिलचस्प हो जाती है, जब दर्शक जानने की कोशिश करते हैं कि श्रद्धा का किरदार वास्तव में कौन है।

हास्य और डर का संतुलन
फिल्म में रुद्र (पंकज त्रिपाठी) और विक्की के दोस्तों जना और बिट्टू के संवाद और व्यवहार के माध्यम से हास्य का संचार होता है, जो भूतिया घटनाओं के बीच दर्शकों को हंसाते हैं। यह डरावनी घटनाओं को एक हल्के-फुल्के मनोरंजन में बदल देता है।
स्त्री की शक्ति और पितृसत्ता पर टिप्पणी
“ओ स्त्री, रक्षा करना” का वाक्य समाज में महिलाओं की भूमिका और पितृसत्तात्मक मानसिकता पर एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी करता है। फिल्म में स्त्री एक रहस्यमयी शक्ति के रूप में प्रस्तुत की गई है, जो पुरुषों को उठा ले जाती है, और इस प्रतीक के माध्यम से महिलाओं की बढ़ती स्वतंत्रता और शक्ति को दर्शाया गया है।
संदेश और प्रतीक
फिल्म की कहानी मध्य प्रदेश के चंदेरी गाँव के इर्द-गिर्द घूमती है, जहाँ एक रहस्यमयी स्त्री पुरुषों को गायब कर देती है। श्रद्धा कपूर का किरदार एक पिशाचनी के रूप में दिखाया गया है, जो दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि वह वास्तव में किस ओर है।
फिल्म का अनूठा प्लॉट और “ओ स्त्री, कल आना” जैसे प्रतीकात्मक वाक्यांश समाज में महिलाओं की स्थिति पर टिप्पणी करते हैं। यह फिल्म केवल मनोरंजन के रूप में नहीं देखी जानी चाहिए, बल्कि यह महिलाओं के सशक्तिकरण और समाज की बदलती सोच पर एक गहरी टिप्पणी भी करती है।
निर्देशक का दृष्टिकोण
अमर कौशिक का निर्देशन दर्शकों को बांधे रखने में सफल रहता है। चंदेरी और भोपाल जैसी वास्तविक लोकेशंस ने फिल्म को असली गाँव का माहौल दिया है, जिससे दर्शकों को फिल्म से गहरा जुड़ाव महसूस होता है।
अंत में
फिल्म को 4/5 रेटिंग दी जा सकती है। यह न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि महिलाओं की शक्ति और समाज के पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण पर एक महत्वपूर्ण संवाद भी है।
लेखक काउंसलर, समीक्षक और ज्ञानोदय विद्यालय भोपाल में वरिष्ठ व्याख्याता हैं।

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