किसान के बेटे ने दो बार पीजी किया। पिता को लगा बेटा सरकारी नौकरी करेगा, लेकिन उस लड़के के मन की बात तो वो खुद ही जानता था। उसने अपने पिता की राह चुनी और खेती करने लगा। पिता से थोड़ी जमीन उधार मांगी और उसका प्रयोग इतना सफल रहा कि पिता ने उसे सारी जमीन दे दी। फिर उसने नई राह पकड़ी उस राह पर भी सफलता पाई और अब वो किसान हर साल 10 लाख रुपए तक का मुनाफा कमा रहा है। आज स्मार्ट किसान में बात करेंगे बैतूल के अनिल वर्मा की।
लेकिन मेरा मन तो खेतों में लगा था

अनिल अपने परिवार के साथ बैतूल में रहते हैं। उनके पास 10 एकड़ जमीन है। बचपन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन करने तक उन्होंने अपने पिताजी को खेती करते हुए देखा था। वे जानते थे कि खेती से पिताजी इतना कमा लेते हैं कि घर चल जाता है, लेकिन उसमें लाभ की गुंजाइश न के बराबर थी। कॉलेज जाने के बाद अनिल ने पहले बॉटनी विषय में एमएससी फिर इतिहास में एमए किया। अनिल बताते हैं कि मेरी पढ़ाई काे देखकर सबको लगता था कि मैं सरकारी नौकरी में जाऊंगा, लेकिन सच कहूं तो मैंने कभी किसी नौकरी के लिए ट्राय तक नहीं किया।

ऐसे शुरू हुआ खेती का सफर

एक कॉलेज से लौटते हुए अनिल ने अपने पिताजी से कहा कि पापा आप मुझे अपनी 10 एकड़ जमीन में से दो एकड़ जमीन उपयोग के लिए दे दो। मैं इसमें सब्जी उगाना चाहता था। कॉलेज जा रहे अपने बेटे की यह बात सुनकर अनिल के पिता को अचरज तो हुआ, लेकिन खुशी भी हुई कि पढ़ाई के दौरान किसान का बेटा किसानी करना चाहता है। उन्होंने सहज ही अनिल को उसी समय कमिटमेंट कर दिया कि तुम दो एकड़ जमीन में सब्जी उगा सकते हो। अनिल बॉटनी से पढ़ाई कर रहे थे तो वो खेती के आधुनिक तरीकों के बारे में भी जानते थे। इतनी रिसर्च कर चुके थे कि बैतूल के वेदर में कौन सी सब्जी फायदा का सौदा बनेगी। अनिल ने खूब मेहनत की और पहली ही फसल में खासा मुनाफा कमाया। ताजी सब्जियां होने के कारण मंडी के व्यापारी हाथों-हाथ ले लेते थे। लाभ बढ़ता जा रहा था। पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। फिर अनिल ने अपने पिता से और जमीन मांगी तो पिता ने सहर्ष अनुमति दे दी। अब दस एकड़ जमीन पर अनिल सब्जियां उगाकर फुल टाइम किसान हो चुके थे। हजारों से बढ़कर उनकी आय लाखों में पहुंच गई थी।

आसान नहीं थी मछली की खेती, खूब परेशानियां आईं

अनिल बताते हैं कि मछली की खेती आसान नहीं थी। इसमें बहुत परेशानियां आईं। मैंने पढ़ा था कि देश में बंगाल की मछली काफी प्रसिद्ध है। मैंने वहां से मछली के अंडे लाकर यहां मछली पालन की सोचा। कोलकाता गया और वहां से मछली के अंडे खरीदे, लेकिन कोलकाता और बैतूल के मौसम में काफी अंतर होने के कारण वे मर जाते थे। पहली बार लगा कि मैंने लापरवाही बरती होगी, फिर अच्छे से कंटेनर में मंगवाए, नतीजा वही था।

मैंने हार नहीं मानी और सात बार बंगाल से मछली के अंडे मंगवाए, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद मैंने खेत में ही तालाब खुदवाया। एक तरफ सब्जियों की खेती होती थी तो दूसरी तरफ मछली पालन। इसके लिए मैंने बैतूल में मिलने वाली मछलियां खरीदीं। उनकी हैचिंग कराई फिर जैसे ही अंडे में से बच्चे निकलते हैं, उन्हें बेच देते थे या कभी बच्चे बड़े करने के बाद उन्हें मछली बनाकर बेचते थे। यही प्रोसेस अब भी चालू हैं।

ऐसे तैयार होते हैं मछली के अंडे

अनिल ने बताया कि मछली के अंडे तैयार करने के लिए सबसे पहले भारतीय प्रजाति की मेजर कार्प, माइनर कार्प, रोहू, कतला, मृगल को बारिश में एचसीजी हार्मोन इंजेक्ट करके टैंक में डालते हैं। ये मछलियां 6 से 7 घंटे में ब्रीडिंग करती हैं। इनके अंडे इकट्ठा करके दूसरे टैंक में डालते हैं। इसके बाद इनकी हैचिंग की जाती है। हैचिंग उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें अंडे से बच्चों को विकसित किया जाता है। इसके बाद 18 से 20 घंटे में बच्चा निकलता है। 72 घंटे बाद बारीक बच्चा, जिसे जीरा कहा जाता है, वह निकलता है। अब वह बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं। कभी इन्हें बड़ा करके भी बेचते हैं। जीरा इसलिए कहते हैं, क्योंकि बच्चे का आकार जीरे के दाने जितना बड़ा होता है।

फ्राई लिंक 500 रुपए प्रति हजार बिकता है।

फिंगर 3 रुपए प्रति नग के हिसाब से बिकता है। जीरा पालन में बहुत चुनौतियां मध्यप्रदेश में मछली का जीरा पालन करने में सबसे बड़ी चुनौती यहां का बदलता हुआ मौसम है। दरअसल, जीरा पालन के लिए एक जैसे टेम्प्रेचर की जरूरत होती है, लेकिन बैतूल में मौसम बदलता रहता है। ज्यादा सर्दी पड़ने पर जीरा बर्बाद होने लगता है। ठंड के मौसम में तापमान काफी कम होने से नुकसान उठाना पड़ता है।

मैं खुद ही मछली पालन को लेकर काफी शोध कर चुका हूं। मुझे मालूम है कि जीरा पालन करने के दौरान किस तरह की सावधानी बरतनी पड़ती है। इसके लिए पॉड और तालाब की डिजाइन खुद ही तैयार किया है। इस तरह के सिस्टम बना दिए हैं कि मछली को सूटेबल टेम्प्रेचर मिल सके।

अलग-अलग तरीके के होते हैं टैंक

अनिल ने बताया कि मछलियों को ब्रीडिंग, हैचिंग और फिर बड़ा करने के अलग-अलग प्रकार और आकार के टैंक हैं। इनमें ब्रीडिंग टैंक, इनकुबेशन टैंक, नर्सरी पौंड शामिल हैं। ब्रीडिंग टैंकों में नाम से ही पता लग रहा है कि मछलियों की ब्रीडिंग करवाई जाती है। इनकुबेशन टैंकों में अंडे सहेजे जाते हैं। टैंको में बारिश के अलावा अन्य दिनों में पानी को नदी की तरह बहाव दिया जाता है, ताकि मछली को पानी बहता हुआ लगे। बारिश का अहसास कराने के लिए टैंको में कृत्रिम बारिश कराने के लिए पाइपों में छेद करते हैं, ताकि मछली को बारिश का मौसम लगे।