सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस / आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: कच्चाथीवू पर जारी विवाद के बीच श्रीलंका के मंत्री ने कहा है कि इस द्वीप को वापस लेने के भारत के बयानों का कोई आधार नहीं है। श्रीलंका के मत्स्य पालन मंत्री डगलस देवानंद ने कहा, “भारत में चुनाव का समय है। ऐसे में कच्चाथीवू पर दावे से जुड़े बयान आना कोई नई बात नहीं है।”
जाफना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान गुरुवार को श्रीलंकाई मंत्री ने कहा, “मुझे लगता है भारत इस जगह को खुद हासिल करना चाहता है ताकि श्रीलंकाई मछुआरों को यहां कोई हक न मिले।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (31 मार्च) को एक RTI रिपोर्ट का हवाला देकर कहा था कि कांग्रेस ने भारत के रामेश्वरम के पास मौजूद कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था। हर भारतीय इससे नाराज है।
मंत्री बोले- 1974 में दोनों देशों के मछुआरे एक-दूसरे की सीमा में मछली पकड़ते थे
डगलस ने कहा, “1974 में भारत-श्रीलंका के बीच समझौता हुआ था। इसके तहत दोनों देशों के मछुआरों को एक-दूसरे की समुद्री सीमा में मछली पकड़ने की इजाजत दी गई थी। लेकिन इसके बाद 1976 में नया समझौता हुआ और मछुआरों को मिले अधिकार पर रोक लगा दी गई।”
श्रीलंकाई मंत्री ने बताया कि नए समझौते के तहत भारत को कन्याकुमारी के पास मौजूद वेज बैंक मिला। यह कच्चाथीवू से 80 गुना बड़ा इलाका है, जहां बहुत से समुद्री संसाधन मौजूद हैं। 1976 रिव्यू में यह इलाका भारत को मिला था।
दावा- श्रीलंका में गैरकानूनी तरह से घुस रहे भारतीय मछुआरे
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में श्रीलंकाई मछुआरों ने आरोप लगाया है कि भारत के मछुआरे गैरकानूनी तरह से श्रीलंका की समुद्री सीमा में मछली पकड़ने पहुंच रहे हैं। इस साल की शुरुआत से लेकर अब तक श्रीलंकाई नेवी 178 मछुआरों को पकड़ा है। इस मामले को लेकर श्रीलंका में कई जगह प्रदर्शन भी हुए हैं, जिसकी वजह से मत्स्य पालन मंत्री डगलस देवानंद पर प्रेशर बढ़ रहा है।
इससे पहले बुधवार को श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने कहा था, “यह मुद्दा 50 साल पहले सुलझा लिया गया था। इसे दोबारा उठाने की कोई जरूरत नहीं है। कच्चाथीवू पर कोई विवाद नहीं है। भारत में सिर्फ राजनीतिक बहस चल रही है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। लेकिन इस पर अधिकार को लेकर कोई बात नहीं हुई है।”
इससे पहले भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 1 अप्रैल को भारत-श्रीलंका के बीच स्थित कच्चाथीवू द्वीप पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि इंदिरा सरकार ने 1974 में भारत का ये द्वीप श्रीलंका को दे दिया था।
कच्चाथीवू पर जयशंकर के अहम दावे…
- 1974 के समझौते की तीन कंडीशन थीं
जयशंकर ने कहा था कि 1974 में इंडिया और श्रीलंका ने एक समझौता किया, जिसके जरिए दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा का निर्धारण हुआ। इस सीमा को तय करते वक्त कच्चाथीवू को श्रीलंका को दे दिया गया। इस समझौते की 3 और कंडीशन थीं।
पहली- दोनों देशों का अपनी जल सीमा पर पूरा अधिकार और संप्रभुता होगी। दूसरी- कच्चाथीवू का इस्तेमाल भारतीय मछुआरे भी कर सकेंगे और इसके लिए किसी ट्रैवल डॉक्यूमेंट की आवश्यकता नहीं होगी। तीसरी- भारत और श्रीलंका की नौकाएं एक-दूसरे की सीमा में यात्राएं कर सकेंगी जैसा वह परंपरागत रूप से करती आ रही हैं।
यह समझौता संसद में रखा गया। तब के विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने 23 जुलाई 1974 को संसद को भरोसा दिलाया था कि दोनों देशों के बीच सीमाओं का निर्धारण बराबरी से हुआ है, ये न्यायसंगत है और सही है।’