भोपाल । बंपर पैदावार के चलते मप्र को ख्याति दिलाने वाली सोयाबीन फसल से अब किसानों का मोह भंग हो गया है। लगातार नुकसान झेल रहे किसान अब धान, उड़द और अरहर की खेती में रुचि लेने लगे हैं। इस बार प्रदेश में सोयाबीन का रकबा करीब 25 फीसदी घट गया है। वहीं मौसम के दुष्प्रभाव और कीट प्रकोप की मार झेल रहे सोयाबीन की पैदावार भी इस साल 50 फीसदी घटने की आशंका जताई जा रही है। इसका असर सोयाबीन तेल के दामों में बढ़ोतरी के रूप में दिखाई दे सकता है।

दस साल पहले तक प्रदेश के अधिकांश जिलों में काफी सोयाबीन बोया जाता रहा, लेकिन मौसम की मार और पैदावार में कमी से यह घाटे का सौदा बनने लगा। पिछले साल अतिवर्षा के कारण प्रदेश में सोयाबीन फसल को काफी नुकसान हुआ था। इस वजह से इस बार किसानों को बीज भी मुश्किल से मिला और दाम भी दोगुना से अधिक रहे।

50 फीसदी तक घट गई पैदावार

कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सोयाबीन की पैदावार प्रति हेक्टेयर 18 से 20 क्विंटल मानी जाती रही है लेकिन पांच वर्षों के दौरान यह घटकर आठ से 10 क्विंटल तक पहुंच गई है। जबकि लागत हर साल बढ़ती रही। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में बीते साल 66,73,869 हेक्टेयर में सोयाबीन की बोवनी हुई थी। इस साल इसका रकबा 50,05,402 हेक्टेयर रह गया है यानी इसमें पिछले साल के मुकाबले 25 फीसदी की गिरावट आ गई है। पिछले साल की तुलना में धान का रकबा 44 फीसदी बढ़ गया है।

लगातार घट रही है पैदावार

वर्ष 2018-2019 तक मध्य प्रदेश सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य था। उस वक्त सालाना पैदावार 67 लाख टन के करीब थी। वर्ष 2019-2020 में यह घटकर 49 लाख टन रह गई। वर्ष 2020-2021 में पैदावार 51 लाख टन रही। इस बार खराब मौसम और कीट प्रकोप से पैदावार में काफी कमी आ सकती है। सोयाबीन की पैदावार कम होने की मुख्य वजह किसानों ने फसल में रोटेशन सिस्टम नहीं अपनाया। एक ही फसल बोते रहे। जमीन की उर्वरा शक्ति लगातार कम होती रही। इससे कीट प्रकोप भी बढ़ता गया।

सोयाबीन तेल की कीमतों में आएगा उछाल

कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के प्रदेश उपाध्यक्ष रवि तलरेजा बताते हैं कि पिछले एक साल में सोयाबीन तेल की कीमत में 53 रुपये प्रति लीटर तक की वृद्धि हुई है। सोयाबीन की पैदावार घटने से तेल के दाम दस फीसद तक फिर बढ़ सकते हैं।

 

इनका कहना है

प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से सोयाबीन किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गई है। किसान विकल्प के तौर पर धान, उड़द और अरहर की खेती में रुचि दिखा रहा है, यह अच्छी बात है। जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए भी फसल परिवर्तन जरूरी था।

– कमल पटेल, कृषि मंत्री, मध्य प्रदेश