सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद, कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत के बावजूद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया। लेकिन सवाल यह है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया?
क्या यह राहुल गांधी की जिद थी? विदेशी मूल का विवाद? या उनकी अंतरात्मा की आवाज?
आज हम इस अनसुनी कहानी को डीटेल में समझेंगे।
[2004: कांग्रेस की वापसी और बीजेपी की हार]
2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने ‘आम आदमी को क्या मिला?’ के नारे से बीजेपी के ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान को हराया।
- कांग्रेस 145 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत नहीं था।
- यूपीए गठबंधन ने सोनिया गांधी को नेता चुना, और प्रधानमंत्री बनने की तैयारियां जोरों पर थीं।
- राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने शपथ ग्रहण की तैयारियों का संकेत दिया। लेकिन 18 मई की शाम को सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद से इनकार कर सबको चौंका दिया।
[पर्दे के पीछे की कहानी: क्या हुआ 18 मई को?]
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी किताब में लिखा है कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार थीं।
- शपथ ग्रहण के निमंत्रण पत्र भी टाइप हो चुके थे।
- लेकिन अचानक उन्होंने मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित कर दिया।
क्या इस फैसले के पीछे केवल परिवारिक कारण थे, या कोई रणनीतिक सोच?
[राहुल गांधी का डर: सुरक्षा का मुद्दा]
पूर्व मंत्री नटवर सिंह की किताब ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ के अनुसार, राहुल गांधी ने सोनिया को पीएम बनने से मना कर दिया था।
- राहुल को अपनी मां की सुरक्षा को लेकर चिंता थी।
- उन्होंने सोनिया से कहा, ‘आपके पास 24 घंटे हैं, तय कीजिए कि आप क्या करना चाहती हैं।’
- सोनिया गांधी ने बेटे की चिंता को प्राथमिकता दी और उनका निर्णय बदल दिया।
[विदेशी मूल का विवाद: विपक्ष का दबाव]
सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा विपक्ष ने जोर-शोर से उठाया।
- सुषमा स्वराज ने कहा था कि अगर सोनिया पीएम बनीं, तो वह सिर मुंडवा लेंगी।
- राष्ट्रपति भवन को कई संगठनों से चिट्ठियां मिलीं, जिनमें सोनिया के विदेशी मूल को लेकर विरोध दर्ज कराया गया।
यह दबाव भी सोनिया के पीछे हटने का कारण बन गया।
[अंतरात्मा की आवाज या राजनीतिक सूझबूझ?]
सोनिया गांधी ने कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में कहा:
“मेरा लक्ष्य कभी प्रधानमंत्री बनना नहीं था। मेरी अंतरात्मा की आवाज कहती है कि मैं यह पद स्वीकार न करूं।”
- कई वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की।
- मणिशंकर अय्यर ने इसे महात्मा गांधी के त्याग से जोड़ा।
लेकिन सोनिया गांधी ने अपने फैसले को नहीं बदला।
[मनमोहन सिंह का चयन: त्याग की मिसाल]
सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह का नाम प्रधानमंत्री के लिए आगे बढ़ाया।
- 22 मई 2004 को मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
- यह फैसला भारतीय राजनीति में त्याग और सूझबूझ का प्रतीक बन गया।
निष्कर्ष:
सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री पद ठुकराना एक ऐतिहासिक घटना थी।
- यह त्याग, परिवारिक जिम्मेदारी और राजनीतिक सूझबूझ का संगम था।
- क्या यह फैसला सही था या नहीं, यह तो इतिहास तय करेगा।
आपका क्या विचार है? क्या सोनिया गांधी का यह निर्णय भारतीय राजनीति के लिए सही कदम था? हमें कमेंट में बताएं।