आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : 1985 में आई क्लासिक फिल्म मैसी साहब के फ्रांसिस मैसी।
2001 में आई लगान के भूरा।
2015 में आई पीकू के डॉ. श्रीवास्तव से लेकर वेब सीरीज पंचायत के प्रधान जी तक।
एक्टर रघुबीर यादव किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। अपनी एक्टिंग से कई यादगार किरदारों को लोगों के दिलों में जिंदा रखा है। आमिर खान के प्रोडक्शन की फिल्म पीपली लाइव में बुधिया बने रघुबीर यादव ने ही फेमस गाना महंगाई डायन भी गाया है। उनकी पर्सनैलिटी के कई पहलू हैं।
मध्य प्रदेश के जबलपुर में जन्मे रघुबीर यादव का एक्टर बनने तक का सफर काफी मुश्किल भरा था। पढ़ाई में हमेशा हाथ तंग रहा, रिजल्ट बिगड़ने के डर से घर छोड़कर भागे थे। ये भागना ही उन्हें एक्टिंग की तरफ ले गया।
एक ड्रामा कंपनी में ढाई रुपए रोज की नौकरी से शुरू हुआ सिलसिला टीवी, फिल्मों से होता हुआ वेब सीरीज तक आ पहुंचा है। बॉलीवुड में चार दशक गुजार चुके रघुबीर जी से मेरी बात उनके शुरुआती सफर और स्ट्रगल पर हुई। वे अपने नए प्रोजेक्ट में लगे हैं, जिसका लुक अभी रिवील नहीं किया जा सकता, लिहाजा हमारी बात टेलिफोनिक ही हो पाई
औपचारिक बातों के बाद उन्होंने अपनी कहानी शुरू से शुरू की…आज की स्ट्रगल स्टोरी में पढ़िए दिग्गज एक्टर रघुबीर यादव की कहानी….
वे कहते हैं, मेरा जन्म 25 जून, 1957 को मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। रहन-सहन सब कुछ ठेठ गांव वालों जैसा ही था। पेड़ के नीचे टाट पट्टी पर बैठकर पढ़ाई करता था। फिर पास के जंगल में पिताजी के साथ जाकर गाय-भैंस चराता था। सोचिए, जिसकी दिनचर्या ऐसी हो, क्या कभी वो एक्टर बनने का ख्वाब सजा सकता है, ये तो सब किस्मत का खेल है। पढ़ाई में भी खास अच्छा नहीं था। हालांकि संगीत से बहुत प्यार था। अक्सर गांव की रामलीला मंडली में गाया करता था।
घर के पास में नानाजी ने मामा की स्मृति में लक्ष्मी नारायण विद्या भवन बनवाया था। दसवीं की पढ़ाई के बाद मैंने यहीं पर हायर सेकेंडरी की पढ़ाई की थी। हायर सेकेंडरी में घरवालों मे साइंस स्ट्रीम में एडमिशन करा दिया था। एक तो पहले से पढ़ाई में हाथ तंग फिर ये साइंस स्ट्रीम। किसी तरह से मैंने पूरा साल तो पार कर लिया, लेकिन रिजल्ट आने से पहले बहुत डरा हुआ था।
मुझे पूरी उम्मीद थी कि फेल हो जाऊंगा। इस बात की चिंता मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। डर था कि अगर फेल हो गया तो परिवार और खुद की बहुत बदनामी होगी। इन बातों से इतना परेशान था कि बस घर से कहीं दूर चला जाना चाहता था।
एक दिन इसी चिंता में डूबा हुआ मैं स्कूल के पास बैठा हुआ था। तभी एक लड़का आया, परेशानी का कारण पूछा। मैंने विस्तार से उसे सारी बातें बताईं और कहा कि घर से भागना चाहता हूं। उसने कहा- चलो, मेरे साथ भाग चलो। दरअसल, इससे पहले भी वो लड़का कई बार घर से भाग चुका था।
लड़के पर भरोसा करके मैं भी उसके साथ कुछ कपड़े लेकर घर से भाग गया। वो मुझे लेकर ललितपुर पहुंचा। 3-4 दिन मेरे साथ रहा, फिर धोखा देकर वो कहीं और चल गया। शहर में मैं बिल्कुल अनजान था। यहां पर सिर्फ पारसी थिएटर जानता था। दरअसल, जब यहां आया था तो उस लड़के के साथ मैं थिएटर में नाटक देखने गया था। जीविका के लिए सोचा कि यहां पर गाने बजाने का काम कर लूंगा।
मैं पारसी थिएटर गया और वहां के मालिक से काम की गुजारिश की। मालिक ने सवाल किया- किस आधार पर तुम्हें काम दे दूं।
जवाब में मैंने कहा- मैं अच्छा गा लेता हूं, आपके के नाटक में गा लूंगा।
मैं उन्हें गाना गाकर भी सुनाया। उस वक्त उन्होंने मेरे खराब उच्चारण पर भी सवाल उठाए। मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि सीमित वक्त में इसे सुधार लूंगा। बाद में मेरी हालत जानकर और काफी मिन्नतों के बाद उन्होंने काम पर रख लिया।