भोपाल । रेलवे फाटकों पर अगर दुर्घटनावश लोहे के गेट टूट भी जाते है तो भी ट्रेनों को ‎सिग्नल ‎मिलता रहेगा। ऐसी स्थिति से ‎निपटने के ‎लिए रेलवे ने लोहे के गेटों के समांतर प्लास्टिक के अतिरिक्त गेट लगा ‎दिए है। दुर्घटना होने पर भी ट्रेनों को नहीं रोका जाएगा। रेलवे ने भोपाल मंडल समेत पश्चिम मध्य रेलवे के जबलपुर व कोटा रेल मंडल के 299 फाटकों पर लोहे के गेटों के समांतर प्लास्टिक के अतिरिक्त गेट लगा दिए हैं। मुख्य गेट टूटने पर ये गेट काम करने लगेंगे। इस तरह ट्रेनों को सिग्नल मिलते रहेंगे और उन्हें रोकने की नौबत नहीं आएगी। अभी आए दिन फाटक पर वाहन चालक निकलने की जल्दबाजी में गेट तोड़ देते हैं। इस वजह से सिग्नल लाल हो जाते हैं और आने-जाने वाली ट्रेनों को रोकना पड़ता है। ट्रेनों को मैनुअल चलाने में 15 से 20 मिनट लगते हैं, तब तक यात्रियों को इंतजार करना पड़ता है। संबंधित रेल फाटक से होकर गुजरने वाली दूसरी ट्रेनें भी प्रभावित होती हैं। बता दें कि भोपाल समेत तीनों मंडलों में फाटकों की संख्या को रेलवे ने कम कर दिया है। इन फाटकों के आसपास रेल अंडरपास बना दिए हैं या फिर ओवरपास बनाने के बाद फाटकों को स्थाई रूप से बंद किया है। तब भी जोन में 299 फाटक हैं, जहां से लोग ट्रैक पार करके एक से दूसरी तरफ आना-जाना करते हैं। इन गेटों का संचालन स्वत: होता है। ये ट्रेनों के चलने के अनुरूप सिग्नल मिलने के आधार पर बंद-चालू होते हैं। जब ट्रेनें आने वाली होती हैं, तब इन गेटों को बंद कर दिया जाता है। जब ट्रेनें गुजर जाती हैं, तो ये स्वत: खुल जाते हैं। इसी बीच कुछ वाहन चालक आए दिन फाटकों को वाहनों की टक्कर से तोड़ देते हैं। ऐसा तब होता है, जब गेट को बंद हुए काफी समय हो जाता है और एक ट्रेन के गुजरने के बाद कुछ समय के लिए गेट खुलता है और कुछ ही समय में दूसरी ट्रेन के गुजरने का संकेत होता है तो गेट बंद होने लगता है। तभी कुछ वाहन चालक जल्द ट्रैक पार करने के चक्कर में बंद होते गेट को पार करने की कोशिश करते हैं और इस तरह वाहनों की टक्कर से गेट टूट जाते हैं। पश्चिम मध्य रेलवे के मुख्य प्रवक्ता राहुल जयपुरिया ने बताया कि मुख्य गेट के टूटने पर प्लास्टिक का अस्थाई गेट काम करने लगेगा। ट्रेनों को सिग्नल मिलते रहेंगे। किसी भी ट्रेन को गेट टूटने के चलते रोका नहीं जा रहा है।