भारतीय शेयर बाजार ने हाल के वर्षों में जिस रफ्तार से नई ऊंचाइयों को छुआ है, वह देश और विदेश के निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। निफ्टी और सेंसेक्स लगातार रिकॉर्ड स्तर पार कर रहे हैं, और रिटेल निवेशक भी बड़ी संख्या में बाजार से जुड़ रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह तेजी भारतीय अर्थव्यवस्था की सच्ची तस्वीर दिखा रही है, या हम एक अत्यधिक मूल्यांकन वाले बुलबुले की ओर बढ़ रहे हैं?
बीएसई और एनएसई में सूचीबद्ध कई कंपनियों का मूल्यांकन इस समय उनके वास्तविक लाभ और प्रदर्शन से काफी अधिक है। सेंसेक्स का औसत प्राइस-टू-अर्निंग (P/E) अनुपात ऐतिहासिक स्तर से ऊपर चल रहा है, जो इस बात का संकेत है कि शेयरों की कीमतें अपेक्षाकृत कम लाभ वाली कंपनियों को भी बहुत ऊंची दर पर आंक रही हैं। इसका मतलब है कि निवेशक आज भविष्य की उम्मीदों के आधार पर निवेश कर रहे हैं, न कि वर्तमान आय पर।
विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) जो लंबे समय से भारतीय बाजार में भरोसा दिखाते आए हैं, अब सतर्क हो गए हैं। वे धीरे-धीरे मुनाफा वसूली की रणनीति अपनाते हुए अपनी पोजीशन कम कर रहे हैं। दूसरी ओर, रिटेल निवेशकों का बढ़ता जोश कहीं न कहीं भीड़-मानसिकता को जन्म दे रहा है, जिसमें तर्क और मूल्यांकन की जगह भावनाएं ले लेती हैं।
अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियाँ जैसे कि अमेरिका में ब्याज दरों की बढ़ोतरी, वैश्विक मंदी की आशंका, और तेल की बढ़ती कीमतें भारतीय बाजार पर सीधा प्रभाव डाल सकती हैं। ऐसे में अगर बाज़ार में किसी भी तरह की नकारात्मक खबर आती है, तो एक तीव्र गिरावट का खतरा बना रहता है।
यह समय है विवेकपूर्ण निवेश का। केवल तेजी देखकर निवेश करना अब जोखिम भरा हो सकता है। निवेशकों को चाहिए कि वे कंपनियों के मौलिक आंकड़ों, स्थिर आय, और दीर्घकालिक योजनाओं को आधार बनाकर निर्णय लें।
क्योंकि बाजार का यह बुलंद सफर अगर किसी कमजोर नींव पर टिका है, तो गिरावट भी उतनी ही तेज हो सकती है। सतर्क निवेश ही इस समय की सबसे बड़ी समझदारी है।
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