भारत सरकार ने समुद्री क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 20,000 करोड़ रुपये की नई नौ-निर्माण वित्तीय सहायता योजना का दूसरा चरण शुरू करने की घोषणा की है। इस महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत अगले छह वर्षों में देश में चार नए ग्रीनफील्ड शिपयार्ड और मरम्मत हब विकसित किए जाएंगे। यह पहल ‘मेक इन इंडिया’ को समुद्री अर्थव्यवस्था तक विस्तारित करने का गंभीर प्रयास मानी जा रही है।
सरकारी दृष्टिकोण में यह योजना रोजगार सृजन, घरेलू निर्माण क्षमता और तटीय राज्यों की अर्थव्यवस्था को सशक्त करने का साधन बनेगी। तमिलनाडु, गुजरात और आंध्र प्रदेश में प्रस्तावित मेगा शिपयार्ड इस नीति की अहम आधारशिला होंगे। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इन परियोजनाओं में पारदर्शिता, निर्माण गति और गुणवत्ता पर ठोस नियंत्रण नहीं हुआ, तो यह महज एक घोषणात्मक प्रयास बनकर रह जाएगा।
ICRA ने इसे एक सकारात्मक कदम बताते हुए कहा कि सुधार आवश्यक थे, लेकिन वित्तीय स्थिरता की चुनौती अब भी बनी हुई है। वहीं, Examarc जैसे विश्लेषकों ने पुराने वायदों की धीमी प्रगति की ओर इशारा करते हुए कहा कि कागजों पर योजनाएँ बेहतर दिखती हैं, लेकिन ज़मीनी क्रियान्वयन कमजोर रहा है।
वैश्विक परिदृश्य में चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देश पहले ही विशाल जहाज निर्माण शक्तियाँ बन चुके हैं। भारत के लिए यह कदम जितना महत्वाकांक्षी है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। अब देखना होगा कि क्या यह नीति वास्तव में समुद्री स्वावलंबन का नया अध्याय खोल पाएगी।
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