नई दिल्ली । पूंजी बाजार नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय (सेबी) ने आईपीओ से फंड एकत्र करने वाली कंपनियों के लिए कुछ नए नियम निर्धारित किए हैं। इन नियमों के तहत आईपीओ से फंड जुटाने वाली कंपनियां अब सिर्फ 25 फीसदी इस्तेमाल इन-ऑर्गेनिक कार्यों में कर सकेंगी, जबकि 75 फीसदी राशि उन्हें कारोबार विस्तार में लगानी पड़ेगी।
आईपीओ में 20 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले प्रवर्तकों की लॉक इन अवधि 3 साल से घटाकर 18 महीने कर दी है, जबकि 20 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी पर लॉक इन अवधि एक साल से घटाकर 6 महीने हो गई है। ये नियम 1 अप्रैल 2022 के बाद आने वाले आईपीओ पर लागू होंगे। एंकर इन्वैस्टर्स के लिए अब लॉक-इन पीरियड को 30 दिन से बढ़ाकर 90 दिन कर दिया गया है।
सेबी के इस कदम से लिस्टिंग के बाद नई कंपनियों के शेयरों के उतार-चढ़ाव पर लगाम लगेगी, जिससे रिटेल इन्वैस्टर्स का निवेश अधिक सुरक्षित हो जाएगा। हाल के समय में कुछ ऐसे मामले देखने को मिले, जिनमें एंकर इन्वैस्टर्स के एग्जिट करते ही शेयर प्राइस धड़ाम हो गया। इसका खमियाजा रिटेल इन्वैस्टर्स को भुगतना पड़ा और उनका निवेश एक झटके में घाटे में चला गया।
जोमैटो, पेटीएम और नायका का आई।पी।ओ। इसके उदाहरण हैं। एक महीने का लॉक-इन पीरियड खत्म होते ही इन कंपनियों के एंकर इन्स्टर्स ने अपनी हिस्सेदारी ऑफ लोड कर दी। इससे ओपन मार्केट में शेयर की कीमतें तुरंत भरभरा गईं। जोमैटो के मामले में एंकर इन्वैस्टर्स की ऑफ लोडिंग के बाद शेयर प्राइस 9 फीसदी गिर गया। पेटीएम के मामले में तो कीमतें एक झटके में 13 फीसदी नीचे आ गईं।
नए बदलाव के बाद इस तरह की गिरावट पर लगाम लगेगी। अब एंकर इन्वैस्टर्स को 90 दिनों तक कम-से-कम 50 फीसदी हिस्सेदारी बनाकर रखनी होगी। एंकर इन्वैस्टर्स के लिए लिस्टिंग के दिन से लेकर अगले एक महीने तक का पुराना लॉक-इन लागू रहेगा। इसके बाद अगले दो महीने के लिए आधे शेयर पर लॉक-इन लगा रहेगा। इसका मतलब हुआ कि अब ऐसे इन्वैस्टर लिस्टिंग के एक महीने बाद भी सिर्फ 50 फीसदी ऑफ लोडिंग कर पाएंगे। यह नियम 1 अप्रैल 2022 से लागू होगा। इसके अलावा सेबी ने प्रैफरेंशियल इश्यू के लिए लॉक-इन पीरियड में भी बदलाव किया है।
ऐसे मामलों में इश्यू के बाद के पेड-अप कैपिटल के 20 फीसदी तक का अलॉटमैंट पाने वाले प्रमोटर्स के लिए लॉक-इन पीरियड को 3 साल से घटाकर 18 महीने कर दिया गया है। इसी तरह जिन प्रमोटर्स के पास 20 फीसदी से ज्यादा अलॉटेड शेयर रहेंगे, उनके लिए लॉक-इन पीरियड अब एक साल के बजाय 6 महीने का रहेगा। नॉन-प्रमोटर इन्वैस्टर के लिए अब एक साल की जगह छह महीने का लॉक-इन पीरियड होगा। सेबी ने फ्लोर प्राइस से लेकर आईपीओ से जुटाए गए फंड के इस्तेमाल तक नियमों में बदलाव किया है। अब आईपीओ से मिले पूरे पैसे के खर्च का हिसाब रखा जाएगा। कंपनियां आईपीओ से मिले फंड का 25 फीसदी हिस्सा ही विलय व अधिग्रहण पर खर्च कर पाएंगी। इन बदलावों से उम्मीद की जा रही है कि अब पब्लिक से पैसे जुटाकर कंपनियां मनमाने तरीके से खर्च नहीं कर पाएंगी। रिटेल इन्वैस्टर्स के लिए निवेश के जोखिम भी अब कम हो जाएंगे।