सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : भोपाल में सप्रे संग्रहालय के अलंकरण समारोह में सहभागिता की।
माधवराव सप्रे जैसे ज्ञानी महापुरुष सदियों में होते हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक विद्वान गढ़े हैं। यह सभी विद्वान भारतीय ज्ञान परंपरा का ही हिस्सा हैं। इस तरह कह सकते हैं कि सप्रे जी की स्मृति में स्थापित यह संग्रहालय उसी ज्ञान परंपरा को सहेजे हुए हैं।
समारोह में पत्रकारिता, मीडिया शिक्षा और जनसंपर्क क्षेत्र की करीब दर्जन भर से ज्यादा प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया।
संग्रहालय में आने का यह पहला अवसर है, अब तक इसके बारे में सुना ही था। यहां आकर अहसास हुआ कि यहां संजोई गई सामग्री शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी है। प्रदेश के जो विश्वविद्यालय यहां से संबद्ध नहीं है उन्हें भी इस संस्थान से जोड़ा जायेगा, ताकि विद्यार्थी इसका लाभ उठा सकें। सप्रे जी के व्यक्तित्व से नई पीढ़ी को परिचित करवाने के लिए उन्हें पाठ्यक्रम में शामिल कराने के प्रयास होंगे। भारत विश्व गुरु रहा है, लेकिन सदियों पहले षडयंत्रपूर्वक भारतीय ज्ञान परंपरा को खारिज किया गया।
दु:ख की बात है कि आजादी के बाद भी हमारी इस परंपरा के गौरव को पुर्नस्थापित करने की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन नई शिक्षा नीति में इस तरह के प्रयास किये जा रहे हैं कि आने वाली पीढ़ी यह जान सके कि दुनिया में जिस ज्ञान की खोज के दावे किये जाते हैं, वह भारत सदियों पहले ही जान चुका था।
नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में मप्र आगे रहा है। देश में ऐसे प्रयास हो रहें कि वर्ष 2030 तक यह पद्धति तैयार हो जाये। इसके दस साल बाद अर्थात 2040 तक यह संपूर्ण रूप से आकार ग्रहण कर लेगी तथा 2047 तक पूरे देश में लागू हो जायेगी। इसके बाद भारत विश्व गुरु बनने की दिशा में बढ़ चलेगा।
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