भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में घोषित संघर्ष विराम अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता और कूटनीतिक प्रयासों का परिणाम है। यह निर्णय कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद उपजे तनाव को कम करने की मंशा से लिया गया है। इस पहल में अमेरिका, यूके और खाड़ी देशों की अहम भूमिका रही। किंतु, यह सवाल यथावत है—क्या यह संघर्ष विराम स्थायी शांति की ओर कदम है या एक रणनीतिक अस्थायी विराम?

🔹 1. संघर्ष विराम की पृष्ठभूमि

कश्मीर में हुए आतंकी हमलों के बाद भारत-पाक तनाव चरम पर पहुंचा।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने सक्रिय मध्यस्थता की।

दोनों देशों ने पूर्ण और तत्काल संघर्ष विराम पर सहमति जताई।

🔹 2. भारत का दृष्टिकोण: रणनीतिक ठहराव

भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने का संकेत दिया जब तक पाकिस्तान आतंकवाद पर ठोस कार्रवाई नहीं करता।

यह संघर्ष विराम, भारत के लिए एक रणनीतिक ठहराव है, जिससे वह अपनी सैन्य, कूटनीतिक और सुरक्षा रणनीति को पुनर्संतुलित कर सके।

🔹 3. पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: कूटनीतिक दिखावा

पाकिस्तान इस संघर्ष विराम को अपनी कूटनीतिक सफलता के रूप में प्रस्तुत कर रहा है।

वास्तविकता में, यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय दबाव और संभावित युद्ध की आशंका से प्रेरित है।

🔹 4. अविश्वास और अस्थिरता की स्थिति बनी हुई

भारत का स्पष्ट कहना है कि उसने धार्मिक स्थलों को नहीं, केवल सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया।

दोनों देशों के बीच पारस्परिक अविश्वास अभी भी गहरा है।

🔹 5. आगे की राह: सुरक्षा और रणनीति

भारत को चाहिए कि वह अपनी आंतरिक सुरक्षा नीति को और कठोर करे।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान पर आतंकवाद के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का दबाव बनाए रखे।

कूटनीति के साथ-साथ तकनीकी निगरानी, सीमा सुरक्षा और सामरिक शक्ति को भी मज़बूत किया जाए।

🔹 6. निष्कर्ष: संघर्ष विराम एक अवसर है, अंतिम समाधान नहीं

यह संघर्ष विराम केवल एक अवसर है—एक संभावना कि दोनों देश अपने आपसी मतभेदों को शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में ले जाएं। लेकिन यह तभी संभव है जब पाकिस्तान अपनी ज़मीन से संचालित हो रहे आतंकवाद के विरुद्ध ईमानदार प्रयास करे और भारत अपने सुरक्षा हितों से कोई समझौता न करे।

यदि ऐसा नहीं हुआ, तो यह संघर्ष विराम केवल एक अस्थायी ठहराव बनकर रह जाएगा—एक अधूरी लड़ाई का मौन विराम।

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