राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव करते हुए संकेत दिया है कि वह अब मंदिर आंदोलन जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान के अनुसार, मंदिर आंदोलन अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है, और संघ का ध्यान अब सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता, शिक्षा और आत्मनिर्भर भारत जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहेगा।

RSS ने अगले 15 वर्षों के लिए एक नया लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें अखंड भारत का विचार प्रमुखता से शामिल है। यह लक्ष्य केवल भौगोलिक विस्तार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता को भी स्थान दिया गया है। संघ का मानना है कि यह विचार भारतीय समाज को जोड़ने और उसकी मूल पहचान को पुनर्जीवित करने में सहायक होगा।

इस बदलाव का कारण बदलता समय और राजनीतिक परिदृश्य माना जा रहा है। संघ ने महसूस किया है कि आज के भारत में सामाजिक समरसता और युवा पीढ़ी के साथ संवाद स्थापित करना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। इसके अलावा, भारत के विकास और वैश्विक मंच पर उसकी मजबूत स्थिति सुनिश्चित करना भी संघ के एजेंडे का हिस्सा है।

हालांकि, इस नए दृष्टिकोण को लेकर कई प्रकार की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। आलोचक इसे संघ की रणनीतिक चाल मानते हैं, जबकि समर्थकों का कहना है कि यह संगठन के दूरदर्शी नेतृत्व का प्रमाण है। संघ की नई दिशा भारत के भविष्य को लेकर उसकी गंभीरता को दर्शाती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह बदला हुआ दृष्टिकोण उसकी कार्यशैली और उद्देश्यों में एक बड़े बदलाव का संकेत है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह नया विजन भारतीय समाज और राजनीति पर कैसा प्रभाव डालता है और संघ अपने इन लक्ष्यों को किस तरह से प्राप्त करता है।

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