हाल के वर्षों में शिक्षा के प्रति जागरूकता और इसकी पहुँच में तेजी से विस्तार हुआ है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, 2022-23 में शिक्षा ऋणों में लगभग 17% की वृद्धि हुई, जो ₹96,847 करोड़ तक पहुँच गया है। यह आर्थिक सहायता के माध्यम से उच्च शिक्षा की बढ़ती माँग को दर्शाता है। मध्य प्रदेश में, विशेषकर भोपाल, इंदौर और जबलपुर जैसे शहरों में शिक्षा ऋण लेने का चलन तेजी से बढ़ा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या केवल वित्तीय सहायता से गुणवत्तापूर्ण और रोजगारपरक शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है?
मध्य प्रदेश के कई परिवार, विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, शिक्षा ऋण लेकर उच्च शिक्षा की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि, यह जरूरी है कि इस आर्थिक सहायता के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता और पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता पर भी ध्यान दिया जाए। केवल डिग्री प्रदान करना शिक्षा का लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि छात्रों को जीवन के लिए तैयार करना आवश्यक है।
राज्य के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में अभी भी कई कॉलेजों में बुनियादी सुविधाओं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण की कमी है। यह स्थिति छात्रों को रोजगार की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल हासिल करने में बाधा डालती है। सरकार के ‘स्किल इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य व्यावसायिक कौशल को बढ़ावा देना है, लेकिन इसे शिक्षा प्रणाली में समग्रता से शामिल करने की आवश्यकता है। शिक्षा संस्थानों को उद्योगों के साथ तालमेल बैठाकर छात्रों को ऐसी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जो उन्हें न केवल डिग्री, बल्कि नौकरी की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल भी दे सके।
इस प्रकार, शिक्षा ऋणों में वृद्धि का सही लाभ तभी संभव होगा जब राज्य सरकार, शिक्षा संस्थान और उद्योग मिलकर एक ऐसी प्रणाली तैयार करें जो छात्रों को वित्तीय सहायता के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और रोजगार की संभावनाएं भी प्रदान करे।
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