नवंबर महीने में खुदरा महंगाई दर 5.53% तक गिर गई है, जो लंबे समय से ऊंचे स्तर पर बनी कीमतों से जूझ रहे आम लोगों के लिए राहत की खबर है। सब्जियों की कीमतों में कमी के कारण यह गिरावट दर्ज की गई है, जो यह दर्शाती है कि खाद्य महंगाई का चक्रीय स्वभाव अभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर हावी है। हालांकि यह आंकड़ा सकारात्मक है, लेकिन इसे स्थायी राहत मान लेना जल्दबाजी होगी क्योंकि महंगाई के कई जोखिम अब भी बरकरार हैं।
खाद्य महंगाई, जो मुख्य रूप से खुदरा महंगाई में योगदान देती है, अत्यंत अस्थिर है। मौसम की अनिश्चितताएं, आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं और वैश्विक बाजार में जिंसों की कीमतों में उतार-चढ़ाव कभी भी इस राहत को खत्म कर सकते हैं। ऐसे में सरकार को आपूर्ति श्रृंखला की कार्यक्षमता में सुधार और बफर स्टॉक के समयबद्ध उपयोग जैसे उपायों को और मजबूती से लागू करना होगा।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सतर्कता भी वाजिब है। हालांकि महंगाई में गिरावट आई है, यह अभी भी केंद्रीय बैंक के 4% के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है। हाल ही में, RBI ने चालू वित्त वर्ष के लिए महंगाई दर का अनुमान बढ़ाकर 4.8% कर दिया है, जो दर्शाता है कि ऊर्जा कीमतों की अनिश्चितता और बढ़ती उपभोक्ता मांग से दबाव फिर से बढ़ सकता है।
महंगाई पर नियंत्रण का सीधा असर भारत की आर्थिक वृद्धि पर पड़ता है। अधिक महंगाई से निम्न आय वाले परिवार सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, जिससे उनकी क्रय शक्ति कम होती है और सामाजिक असमानता बढ़ती है। यदि महंगाई स्थायी रूप से नियंत्रित रहती है तो उपभोक्ता खर्च में वृद्धि होगी, जो निर्माण और सेवा क्षेत्रों को प्रोत्साहन दे सकता है।
आगामी महीनों में नीति निर्माताओं को सूझबूझ से संतुलन साधना होगा। जहां मौद्रिक नीतियां जैसे ब्याज दरों का समायोजन अपनी भूमिका निभाएगा, वहीं सरकार को कृषि आपूर्ति तंत्र की कमियों और आयात पर निर्भरता जैसी संरचनात्मक समस्याओं को भी हल करना होगा।
महंगाई में हालिया गिरावट निश्चित रूप से राहत की किरण है, लेकिन इसे बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा। महंगाई से प्रभावी मुकाबले के लिए सावधानीपूर्वक मौद्रिक नीतियों के साथ-साथ संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है। तभी एक ऐसा वातावरण तैयार हो सकेगा, जो समावेशी और सतत विकास के लिए अनुकूल हो।
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