सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : भोपाल में दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय राष्ट्रीय शोधार्थी समागम के दूसरे दिन भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक शोध पर विद्वानों ने विचार साझा किए।

\ज्ञान सनातन है, शोध में प्रमाण जरूरी: प्रो. नचिकेता तिवारी
आईआईटी कानपुर के निदेशक नचिकेता तिवारी ने कहा कि ज्ञान नया या पुराना नहीं होता, बल्कि सनातन होता है। उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं को भारतीय दृष्टिकोण से अनुसंधान करना चाहिए, जिससे न केवल भारत बल्कि समूचे विश्व का कल्याण हो।


निदेशक तिवारी ने भारतीय सभ्यता की विशेषता बताते हुए कहा कि हम भाषा, धर्म या रंग के आधार पर नहीं, बल्कि ज्ञान के आधार पर जुड़े हैं। उन्होंने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देने के बाद भी स्वतंत्र चिंतन करने को कहा, जो शोध की मौलिकता को दर्शाता है।
भविष्य में इंटरनेट प्रोटोकॉल का प्रभाव हर स्तर पर होगा


जेएनयू की प्रोफेसर रीता सोनी ने भविष्य में इंटरनेट प्रोटोकॉल के प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि यह हर मॉलिक्यूल तक पहुंचेगा। उन्होंने योग का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत ने बिना किसी कीमत के विश्व को यह महान परंपरा दी है।
एआई के माध्यम से भाषा और अनुवाद का विस्तार
निदेशक उत्पल चक्रवर्ती ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि इसका सबसे सार्थक उपयोग भाषा और अनुवाद के क्षेत्र में हो रहा है। अनुवाद केवल भाषा परिवर्तन नहीं, बल्कि संस्कृति और संदर्भ को सही ढंग से प्रस्तुत करने की प्रक्रिया है।


भारत का रणकौशल शोध का महत्वपूर्ण विषय: डॉ. अनिल कोठारी
मेपकास्ट के महानिदेशक अनिल कोठारी ने कहा कि भारत का रणकौशल और आयुध परंपरा बड़े शोध का विषय हैं। हमें अपने गौरवशाली अतीत को आत्मसात कर शोध की दिशा तय करनी होगी।
शोध इतिहास को समझने और समाज को जागरूक बनाने का माध्यम: विजय मनोहर तिवारी
माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के कुलपति विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि शोध का उद्देश्य सिर्फ ऐतिहासिक तथ्यों को जानना नहीं, बल्कि समाज को जागरूक करना भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की असली विरासत को समझने और सहेजने के लिए गहराई से शोध करना जरूरी है।
भारतीय लोक परंपरा और दर्शन की महत्ता
छत्तीसगढ़ की शोधार्थी स्वाति आनंद ने कहा कि शोध केवल तथ्यों का संग्रहण नहीं, बल्कि दर्शन और दृष्टि का विकास है। भारतीय लोक परंपरा और समाज के संदर्भ को समझे बिना कोई भी शोध अधूरा है।
समागम के विभिन्न सत्रों में विद्वानों ने भारतीय ज्ञान परंपरा, विज्ञान, इतिहास, दर्शन और तकनीक के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श किया।

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