भारत जैसे लोकतंत्र में, राजनीतिक और आर्थिक पारदर्शिता के महत्व को नज़रअंदाज करना असंभव है। हाल की दो बड़ी घटनाएं – सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देना और अडानी ग्रुप पर लगे 250 मिलियन डॉलर के घूसकांड के आरोप – हमारे तंत्र की पारदर्शिता और नैतिकता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड: लोकतंत्र में धन की पारदर्शिता का सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक घोषित कर दिया। यह योजना 2017 में इस दावे के साथ लाई गई थी कि यह राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाएगी। परंतु हकीकत इसके विपरीत निकली। इस योजना के तहत दानदाताओं की गोपनीयता बनाए रखना सुनिश्चित किया गया, जिससे जनता को यह जानने का हक छीन लिया गया कि राजनीतिक दलों को कौन वित्तीय समर्थन दे रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय ऐतिहासिक है, क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता की स्थापना की दिशा में एक बड़ा कदम है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह फैसला चुनावी सुधारों की ओर कोई ठोस कदम बढ़ा पाएगा? राजनीतिक फंडिंग के स्रोत सार्वजनिक करने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, ताकि लोकतंत्र की जड़े और गहरी हो सकें।
अडानी घूसकांड: भारत की आर्थिक रणनीति पर चोट
दूसरी ओर, अडानी ग्रुप पर 250 मिलियन डॉलर के घूसकांड के आरोप देश की आर्थिक रणनीति और “राष्ट्रीय चैंपियन” बनाने की नीति पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। अडानी समूह पर अमेरिकी अधिकारियों द्वारा विदेशी ठेके पाने के लिए रिश्वत देने के आरोप केवल एक कंपनी की नैतिक विफलता नहीं हैं; यह पूरे तंत्र में गहराई से फैली आर्थिक अनियमितताओं का संकेत देते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “आत्मनिर्भर भारत” और “मेक इन इंडिया” जैसी नीतियां बड़ी कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए बनाई गई थीं। लेकिन जब ये कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख को गिराती हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारी आर्थिक नीतियों में पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी है।
निष्कर्ष: लोकतंत्र और विकास को बचाने की चुनौती
इन दोनों घटनाओं से यह साफ है कि भारत को पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को मजबूती से अपनाने की आवश्यकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला राजनीतिक सुधारों के लिए एक दिशा देता है, लेकिन इसे लागू करने और निगरानी के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
इसी प्रकार, अडानी घूसकांड जैसे मामलों में कड़ी कार्रवाई और आर्थिक नीतियों में सुधार करना समय की मांग है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक विकास का मतलब सिर्फ बड़े समूहों का समर्थन नहीं, बल्कि समग्र विकास और नैतिक व्यापारिक प्रथाओं का पालन भी हो।
अंततः, लोकतंत्र और विकास का सही अर्थ तभी पूरा होगा जब पारदर्शिता और नैतिकता दोनों को प्राथमिकता दी जाएगी। यह केवल एक सरकार या संस्था की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।
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