काबुल। अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान सरकार बनाने की तैयारी में जुटा है। राष्ट्रपति अशरफ गनी बेशक देश छोड़कर भाग गए हों, मगर उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह अभी भी तालिबान से लड़ाई लड़ रहे हैं। काबुल न्यूज की जानकारी के मुताबिक, सालेह की सेना ने तालिबान से काबुल के उत्तर में परवन प्रोविंस में चरिकर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। वहीं, पंजशीर में तालिबान से जंग जारी है। मंगलवार को ही सालेह ने संविधान का हवाला देते हुए खुद को अशरफ गनी की गैरमौजूदगी में कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित केया था।

जानकारी के अनुसार वर्तमान में पंजशीर कंठ के बाहरी इलाके में तालिबान के साथ लड़ाई हो रही है। अफगानिस्तान में काबुल एयरपोर्ट और पंजशीर घाटी को छोड़कर सब जगह तालिबान का कब्जा है। नॉर्दन अलायंस के पूर्व कमांडर अहमद शाह मसूद का गढ़ पंजशीर घाटी राजधानी काबुल के नजदीक स्थित है। यह घाटी इतनी खतरनाक है कि 1980 से लेकर 2021 तक इसपर कभी भी तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है। इतना ही नहीं, सोवियत संघ और अमेरिका की सेना ने भी इस इलाके में केवल हवाई हमले ही किए हैं, भौगोलिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने भी कभी कोई जमीनी कार्रवाई नहीं की।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह भी इसी इलाके से आते हैं और फिलहाल यहीं रह रहे हैं। रविवार को उन्होंने ट्वीट कर कहा था, मैं कभी भी और किसी भी परिस्थिति में तालिबान के आतंकवादियों के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लीजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी। मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा। कभी नहीं। माना जा रहा है कि तालिबान के खिलाफ विद्रोह का यहीं से झंडा बुलंद हो सकता है। पंजशीर की घाटी पर 1970 के दशक में सोवियत संघ या 1990 के दशक में तालिबान ने कभी कब्जा नहीं किया था। अहमद शाह मसूद जिसे अक्सर शेर-ए-पंजशीर कहा जाता है, वे इस इलाके के सबसे बड़े कमांडर थे। इसकी भगौलिक बनावट ऐसी है कि कोई भी सेना इस इलाके में घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पाती।