भोपाल । सरकारी व निजी कॉलेज के साथ विश्वविद्यालय अपने कैंपस के पास बसे गांवों को गोद लेंगे। इसके तहत कुलपति से लेकर प्रोफेसर्स और विद्यार्थी गांव में जाकर ग्रामीण भारत को नजदीक से देख सकेंगे। वहां पर बदलाव का ढांचा तैयार करने के लिए कौन से संसाधनों की जरूरत है, इसकी रिपोर्ट देंगे। हर तीन महीने में इसका रिव्यू किया जाएगा। यह भी पता लगाया जाएगा कि इस दौरान क्या बदलाव आए। गांव को गोद लेने की प्रक्रिया इसी सत्र से शुरू हो जाएगी। प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव का कहना है कि विश्वविद्यालयों को अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए आगे आना चाहिए और समाज के उत्थान में योगदान देना चाहिए। इसके तहत उन्हें अपने कैंपस के पास के गांव गोद लेने की योजना बनाई है।

इसके लिए उन्हें 15 अगस्त का समय दिया है। इस दौरान उन्हें बताना होगा कि वे कौन से गांव गोद ले रहे हैं। अब तक कॉलेजों में एनएसएस या एनसीसी यूनिट एक गांव का दौरा करती है। सामाजिक कार्य करती है। फिर किसी अन्य काम के लिए दूसरे गांव का चयन करती है। अब कॉलेज अपने पास के गांव की पहचान करेंगे। उसके सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए काम करेंगे। उनका काम ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं के लाभ के बारे में बताने के अलावा सामाजिक बुराइयों से अवगत कराना भी होगा।

गांव गोद लेने से इनकी राह बनेगी आसान

अब तक ग्रामीण विकास की योजनाएं एसी कक्ष या ऐसे स्थानों से बनाई जाती हैं, जिनका गांव से सीधा कोई लेना-देना नहीं होगा। आंकड़ों के आधार पर बनाई इन योजनाओं का लाभ गांव तक पहुंचने में भी एक लंबा समय लग जाता है। योजना के बाद गांव सीधे तौर पर विकास की मुख्यधारा से जुड़ जाएंगे। अध्ययन के दौरान विद्यार्थियों को कई इनोवेटिव आइडियाज आएंगे। इनके अलावा वे गांव से जुड़े अपने आइडियाज को जमीन पर उतार सकेंगे। सीधे तौर पर किताबी ज्ञान से वे प्रेक्टिकल की ओर कदम बढ़ाएंगे। इससे उनका जुड़ाव गांव के वास्तिक परिदृश्य से हो पाएगा।

समस्या निराकरण के लिए मंच

सड़क, बिजली, पानी जैसी समस्याओं से रूबरू हो रहे गांव के लोगों को एक मंच मिलेगा, जहां वे अपनी समस्याएं साझा कर सकेंगे। हर तीन महीने में संबंधित गांव का रिव्यू होने पर यह पता लगाने में आसानी होगी कि संबंधित गांव में इस दौरान क्या बदलाव, सुधार आए। गांव के ऐसे युवा जो आगे पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन किन्हीं कारणों से उन्हें उसे छोडऩा पड़ा, योजना ऐसे युवाओं को एक बार फिर से मौका देगी। इसके तहत गांव में ही रहकर वे क्या कर सकते हैं और कैसे कर सकते हैं, इसका मार्गदर्शन मिलेगा। इसके अलावा उसे जमीन पर लाने में मदद भी मिलेगी। गांव अब भी बदलाव से दूर हैं। उनमें कुरीतियां और रुढ़ीवादिता इतनी गहरी है कि वे चाहकर भी इनसे निकल नहीं पा रहे हैं। ऐसे दौर में कॉलेज के प्रोफेसर, विद्यार्थी उनके बीच जाकर उन्हें इससे बाहर निकालने में मदद करेंगे। इसके अलावा वे उन्हें उपलब्ध संसाधनों से उन्नति की राह भी दिखाएंगे।

गांव को नजदीक से देखने का मौका

योजना की शुरुआत होने से विद्यार्थियों और प्रोफेसर्स को गांव और ग्रामीणों के बीच जाने का मौका मिलेगा। जिससे वह ग्रामीण भारत के बारे में जान सकेंगे। इसे विद्यार्थी एक बड़े मौके की तरह भी देख सकते हैं। रूरल डेवलपमेंट के अंतर्गत अपने इनोवेटिव आइडियाज को गोद लिए हुए गांव में प्रयोग के तौर पर पूरा कर सकते हैं।

योजनाओं और समस्याओं की रिपोर्ट बनाएंगे

गोद लेने के बाद विवि का काम होगा कि वह गांव की तरक्की के लिए अलग-अलग उपाय सोचें। उस पर काम करें। शासन की योजनाओं को गांव के हर व्यक्ति तक पहुंचाते हुए लाभ के बारे में अवगत कराएं। गांव की समस्याएं और सरकार की वह योजनाएं जो गांव तक नहीं पहुंची हो, उस पर अपनी रिपोर्ट तैयार करेंगे।

इनका कहना है

योजना मप्र के पिछड़े गांवों में सुधार लाने के लिए है। विवि की बनने वाली रिपोर्ट के बाद प्रशासन का लक्ष्य उन कमियों को दूर करने का होगा। कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को स्टूडेंट्स को पढ़ाने पर जोर दिया जाएगा।

-डॉ. मोहन यादव, उच्च शिक्षा मंत्री