22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने सिर्फ मानवता को नहीं झकझोरा, बल्कि भारत की रणनीतिक सोच को भी एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। इस हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित, सीमाओं को सील और पाकिस्तान के वैश्विक बहिष्कार की मुहिम को तीव्र कर दिया है। यह सिर्फ एक सुरक्षा प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि राजनयिक पुनर्संरेखण की शुरुआत है।
मुख्य बिंदु:
- अंतरराष्ट्रीय समर्थन का बदलता स्वरूप
अमेरिका ने स्पष्ट शब्दों में भारत के आत्मरक्षा अधिकार को समर्थन दिया।
Quad साझेदार जापान और ऑस्ट्रेलिया भारत के साथ खड़े हैं।
फ्रांस और इज़राइल जैसे रणनीतिक साझेदारों की प्रतिक्रिया अपेक्षित और निर्णायक रही।
- रूस और चीन की द्वैध भूमिका
रूस ने ऐतिहासिक मित्रता के अनुरूप तटस्थ रुख अपनाया है, जो भारत के लिए हितकारी है।
चीन पारंपरिक रूप से पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है, लेकिन आर्थिक स्वार्थ इसे सीमित कर सकते हैं।
- इस्लामिक और क्षेत्रीय समर्थन
सऊदी अरब, तुर्की और कुछ इस्लामिक देश पाकिस्तान को सांकेतिक समर्थन देंगे, पर यह समर्थन सिर्फ औपचारिकताओं तक सीमित रहेगा।
- संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ का पारंपरिक रुख
ये संस्थाएं शांति की अपील तो करेंगी, लेकिन इनकी प्रभावशीलता सीमित रहेगी, विशेषकर तब जब वैश्विक शक्तियाँ विपरीत ध्रुवों पर हों।
- भारत की कूटनीतिक प्राथमिकता
रणनीति बनाम प्रतिक्रिया: भारत को युद्ध नहीं, एक सधे हुए राजनीतिक दबाव के जरिए पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करना है।
“शांति” की अगुवाई: भारत को वैश्विक स्तर पर शांति का नेतृत्वकर्ता बनना है, लेकिन ऐसी शांति, जो आतंक को जीरो टॉलरेंस के तहत देखे।
निष्कर्ष:
आज जब आंधी की घड़ी है, तब मित्रता की सच्चाई सामने आती है। भारत को अपनी चालों में संयम, विवेक और दीर्घकालीन सोच दिखानी होगी। कूटनीति की असल परीक्षा संकट में होती है—और यह संकट भारत को एक वैश्विक नीति निर्धारक राष्ट्र के रूप में स्थापित कर सकता है।
यह समय है—नेतृत्व का, साहस का और शांतिपूर्ण दृढ़ता का।
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