सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्कआईटीडीसी इंडिया ईप्रेस / आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल :  गजल सम्राट जगजीत सिंह की आज 83वीं बर्थ एनिवर्सरी है। कॉलेज में छोटी-मोटी महफिलें लगाकर लोगों की फरमाइश पर गाने सुनाने वाले जगजीत सिंह ने अपने हुनर और मखमली आवाज से गजलों को हिंदी सिनेमा में पहचान दिलाई। चिट्ठी न कोई संदेश………., होशवालों को खबर क्या……….कोई फरियाद…..होठों से छू लो तुम….., ये गजलें जगजीत सिंह की आवाज में आज भी सदाबहार हैं।

जगजीत सिंह की आवाज के जादू का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उनकी आवाज में गाना सुनने के लिए एक पायलट ने आधे घंटे तक फ्लाइट लैंड नहीं करवाई। स्वरकोकिला लता मंगेशकर भी जगजीत साहब की इतनी बड़ी प्रशंसक थीं कि उनके हर शो की टिकट खरीदकर उन्हें सुनने जाती थीं।

आज जगजीत सिंह की बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़िए, उनकी गजलों के मायनों से जुड़े उनकी जिंदगी के किस्से-

गायिकी के चक्कर में फेल हुए जगजीत

8 फरवरी 1941 को जगजीत सिंह का जन्म राजस्थान के श्री गंगानगर में हुआ था। सिख परिवार में जन्मे जगजीत का असल नाम जगमोहन सिंह रखा गया था। उनके पिता सरदार अमर सिंह धीमन सरकारी लोक निर्माण विभाग में काम किया करते थे। जब उन्होंने देखा कि जगजीत को गाने में रुचि है, तो उन्होंने शौक की कद्र करते हुए उन्हें ट्रेनिंग दिलवा दी। गायिकी में जगजीत इतने मगन हो गए कि उनका पढ़ाई से ध्यान हटने लगा। नतीजा ये रहा कि जगजीत सिंह हर बार फेल होने लगे। ये उनके पिता के लिए चिंता की बात थी क्योंकि वो चाहते थे कि जगजीत या तो इंजीनियर बनें या IAS अफसर।

लाख कोशिशों के बावजूद जब जगजीत सिंह ने पढ़ाई को तवज्जो नहीं दी तो उनका दाखिला जालंधर के DAV कॉलेज में करवा दिया गया। आर्ट्स की डिग्री लेते हुए ही जगजीत सिंह ने गायिकी को ही अपना प्रोफेशन बनाने का फैसला ले लिया।

कॉलेज की कैंटीन में अक्सर जगजीत सिंह की गायिकी सुनने वालों की भीड़ लगा करती थी। जेब में पैसे नहीं रहते थे, तो जगजीत भी चंद गाने गाकर बिना पैसे दिए ही कैंटीन से निकल जाया करते थे। कैंटीन वाला भी अपनी डायरी में उनका हिसाब लिख लिया करता था, लेकिन कभी पैसे लेता नहीं था।

जब जगजीत मशहूर गजल सम्राट बने तो एक दिन उनका वही पुरानी कैंटीन जाना हुआ तो वही पुराना मालिक संतोख सिंह मिला। संतोख ने उन्हें वही पुरानी डायरी खोलकर दिखाई जिसमें जगजीत का हिसाब लिखा था। हिसाब में 18 कॉफी का हिसाब बकाया था। जगजीत ने माफी मांगते हुए हिसाब चुकाने के लिए जेब में हाथ डाला तो कैंटीन वाले ने हाथ रोक दिया। कहा- आपने पैसे नहीं दिए तो क्या हुआ हमने भी उसके बदले मुफ्त में आपकी गजलें सुनी थीं।